About Me

I write poems - I m going towards me, I write stories - किस्से ओमी भैय्या के, I write randomly - squander with me

Saturday, December 01, 2012

मेरे घर आना तुम

रस्ते की धुल
वो पलाश के फूल
कच्ची पक्की बेर
तो कभी आम या अमरुद 
रंगीन बर्फ से गिरता वो मीठा पानी
या किसी मिठाई की रसीलेदार कहानी 
खेतों में मिला किसी पंक्षी का पंख
नदी किनारे मिला छोटा खूबसूरत शंख  
किसी के धड़ाम से गिरने की लंबी दास्ता
कभी कहीं पहुँचाने का छोटा रास्ता 
कभी वो लटका सा मुँह तुम्हारा   
कभी मजाक में कभी दुखी बेचारा 
तब घर आते हर वो चीज़ जो लाते थे
संग उनके अपनी चुप्पी भी
फिर लेते आना तुम 
समय न बिता हों जैसे 
सब कुछ वैसा ही हों 
ऐसे फिर मेरे घर आना तुम 

Friday, November 30, 2012

शादी की बात - २


सलमान शाहरुख जैसा कोई नहीं दीखता 
एक भी लड़का मेरे मन को नहीं भाता 
फिर भी माता पिता ने है रट लगाईं
बेटा तेरी विदाई की हैं बेला आयी  
मैंने भी पहले नारी जीवन की sympathy गिनाई  
लेकिन भविष्य और सामाज की बात पर उन्होंने हामी भरवाई 

पिता जी खो गए ये बताने में 
कैसे जुगत लगाईं थी माँ को देखने में 
तब घर के बड़े ही देख आते थे 
लड़के तो सीधे मंडप में ही मिल पाते थे 
माता जी भी कुछ कम घबराई न थी
सहमी सहमी सारे मेहमानों के सामने आयी थी 
लेकिन मैंने कह दिया मेरी पसंद होगी जरुरी 
जब तक मिलेगा न मन भाया रह जाउंगी कुवांरी 

घर वाले फिर करने लगे तरह तरह की बाते 
कभी लड़के तो कभी उसके घर वालो के गुण हैं गाते 
पासपोर्ट, क्लोज अप या फेसबुक से फोटो दिखलाते 
हर फोटो में अपनी बेटी का न जाने कैसे भविष्य देख आते 

मैं तो खोज रही एक सपनो का राजकुमार 
सलमान शाहरुख न सही हों अर्जुन रामपाल 
क्यूँ ये लड़के हैं ये ऐसे बिगड़े बिगड़े 
क्या फिल्म वाले सब झूट ही दिखाते 
अभी भी तलाश जारी हैं 
क्यूंकि शादी की बात का पार्ट थ्री बाकी हैं 

शादी की बात

Saturday, October 20, 2012

धुप

आये हैं हमारे आंगन
रुई से चमकते बादल  
जैसे धो के अभी सुखाया हैं 
गगन भी जैसे अभी ही नहाया हैं  
अच्छी खुशबू आती मिट्टी से 
पानी की बुँदे लटकी पत्ती से  
देखो जैसे सूरज टुट गया बूंदों में 
और ये बुँदे ही फैलाती रौशनी जग में 
छोटी छोटी नदियाँ बहती 
आंगन में चांदी सी चमकती 
बारिश के बाद बतलाओ 
धुप होती हैं क्यूँ इतनी उजली 
अम्मा बाहर तो निकलो 
देखो आयी धुप बारिश में धुली  

Saturday, October 13, 2012

क्या दिल्ली क्या लाहौर

किसी की जिद ने
किसी  की साजिश ने
दीवार खड़ी कर दी
सुबह तो थे भाई भाई    
ये कैसी आयी काली परछाई
कि शाम ने सरहदे तय कर दी
हम और तुम दोनों क्यूँ भूले
क्या दिल्ली और क्या लाहौर
सारी गलियां तो अपनी थी
 
अपने बटवारे पर न काबू
अपनों का ही बहाया लहू
आखिर ऐसी भी क्या दुश्मनी
गोद होती जिसमे सुनी   
सपने होते जिसमे कुर्बान 
ऐसी भी क्या जंग लड़नी
हम और तुम दोनों क्यूँ भूले
क्या दिल्ली और क्या लाहौर
रोती आखें तो अपनी थी
 
लम्बा अरसा बीत गया
कुछ तेरा कुछ मेरा खो गया
फिर भी नफरत की रात न बीती
आ दोनों मिल कर कोशिश करे
कल की सुबह हो उजयारी
फिर से न दोहराएँ वहीँ कहानी
हम और तुम दोनों क्यूँ भूले
क्या दिल्ली और क्या लाहौर
हँसता बचपन तो अपना हैं   

Saturday, October 06, 2012

बड़ा हो गया हूँ

जगने पर भी चादर ओड़ कर
सोचता हूँ माँ आएगी जगाने
भूल जाता हूँ हर सुबह
कि कम्बखत बड़ा हो गया हूँ मैं

रात को करवटे बदलता रहता हूँ
सोचता हूँ माँ आएगी सुलाने 
भूल जाता हूँ हर रात 
कि कमबख्त बड़ा हो गया हूँ मैं

अनसुलझे सवालो को बटोर कर
सोचता हूँ पापा से पूछूँगा
भूल जाता हूँ हर बार  
कि कमबख्त बड़ा हो गया हूँ मैं

दुनिया से लड़ कर आ जाता हूँ
सोचता हूँ भैय्या निपट लेगा सबसे
भूल जाता हूँ हर बार  
कि कमबख्त बड़ा हो गया हूँ मैं

छोटे होने पर थी नाराज़गी
सोचता था जल्दी बड़ा हो जाऊ 
लेकिन इतनी भी क्या थी जल्दी
कि कमबख्त बड़ा हो गया हूँ मैं

Saturday, September 08, 2012

भारत के वीर

भाषणों से उद्देलित हो कर 
तुच्छ चिंगारी में ज्वलित हो कर 
भीड़ की आंधी बन जाते हो 
भारत के निर्माता तुम 
कैसे अन्यायी लोगो के हाथों  
आखिर प्यादे बन जाते हो 
पाखंडी चेहरों को देखना सीखो 
छुपे उद्देश्य को जानना सीखो 
छोड़ के अपनी चिर निद्रा  
भारत के वीर अब तो जागो 

भारत का स्वर्णिम इतिहास 
दबा रहे कैसे किताबो में 
जो सोचा होता यहीं आज़ाद ने 
क्रांति के अध्याय कैसे जुड़ पाते 
न रहो पढ़ते सही गलत के चिट्ठे 
उचित अवसर की राह न देखो  
समय सदा उचित ही रहता 
देश हित में कुछ नया गड़ने को 
अपना स्वर्णिम भविष्य मांगो 
भारत के वीर अब तो जागो 

जन्म लिया स्वतंत्र धरती पर 
फ़िर भी दुराचार की है पराधीनता 
बिस्मिल जैसा नहीं तुम्हे संताप 
फ़िर भी हर युग की होती अपनी चिंता 
जो ना कर सकते त्याग भगत सा 
पुष्प कुमार भी ना बन बैठो 
जितना साहस हो उतना लेकर 
बेहतर भारत की ओर कुच करो  
देश हित में अब ललकार करो 
भारत के वीर अब तो जागो 

पूछ सकते हो सवाल बहुत 
बूढी होती पीढ़ियों को 
जान सको तो जानो 
उनकी की हुई गलतियों को 
आने वाली पीढियां पूछेगी कितने सवाल 
आज ही सारे उनके जवाब लिख दो   
फ़िर से वहीँ काली रात ना आये 
हृदय जलाकर कर सूर्य बनो 
सूर्य न बन सकते तो दिए बन जाओ  
भारत के वीर अब तो जागो 

Friday, September 07, 2012

तुम्हे

तुम ख्वाब सी खुबसूरत कैसे 
कैसे हो मेरे ख्यालो जैसी 
क्या किसी ने चुरा के मेरे राज़ 
तुम्हे वैसे ही बनाया हैं 

तुम भीड़ में खो भी नहीं जाती  
मिल जाती हो इतफाक से हर कहीं 
क्या किसी ने चुरा के मेरे रास्ते
तुम्हे उन्ही रास्तो पर चलाया हैं   

तुम्हारी मुस्कराहट दिल को छूती 
आखों को तुम्हारी हंसी जगमगा देती
क्या किसी ने चुरा के मेरे हसीं पल 
तुम्हे ये सब बताया हैं  

जिंदगी कट रही थी यूँ ही 
की फरिश्तो से गुज़ारिश कितनी 
क्या किसी गुज़ारिश ने पुरी हो कर 
तुम्हे धरती पे बुलाया हैं 

Wednesday, September 05, 2012

अंतिम सवांद

प्यार ऐसा भी क्या, जो फिर दिल पछताए
दे न पाउँगा कुछ भी, झूटे वादों के सिवाए
ख्वाब न सजाओ जो, तुमको कल रुलाये
जो कल आंसू आयेंगे तो पोंछ भी न पायोगी
 
अपनों के भेष में छुपे, सब अदाकार हैं पराये
आओ न मेरी दुनिया में, वीराने के हैं साए
तुम्हारे अहसास सारे, हालात से कुर्बान न हो जाये
जो कल अहसास न होंगे, तो कुछ कह भी न पायोगी
 
क्यूँ मेरे साथ कोई, पत्थर पर नंगे पाँव चले  
ज़िन्दगी की धुप में, क्यूँ कोई और संग तपे
कमसिन उम्र ये क्यूँ, लू के थपेड़ो में जले
जो कल उम्र झुलस गयी, तो क्या न पछ्तायोगी
 
अभी इश्क के मौसम, गायेंगे और भी तराने
तेरे हुस्न के होंगे, और भी बहुत से दीवाने
फिर दिल में कोई, आएगा अपना घर बसाने
जो कल दिल ही टुटा, तो फिर किसे बसा पायोगी  

Sunday, September 02, 2012

बाबु फिरंगी

बाबु, फिरंगी बना कैसे 
पहले तो था केवल बाबु
नाम का था इंजीनियर 
मजदुर था वो प्लांट के बाजु 

एक दिन सूझी उसको खुराफात 
मार के लगी लुगाई नौकरी को लात 
आ पहुंचा बैंगलोर एक रात
बोला अब सोफ्टवेयर ही मेरी जात 

पहले दोस्तों संग दोस्ती निभाई 
पराठो और दारू में बचत गवाई
आईने ने एक दिन हकीकत दिखाई  
बढ़ी हुई दाढ़ी के साथ जब थोड़ी अकल आई 

बना के रेज़ुमे बड़ा वाला 
थोड़ा सच थोड़ा झुट वाला 
खटखटाया हर कम्पनी का दरवाजा 
लेकिन कोई न खोले उसके लिए ताला

एक स्टार्ट अप ने बोला अंदर आ जाओ
पैसे का छोड़ो काम में मन लगाओ 
थोड़े दिन तो ऐसे ही बाबु का मन बहलाया 
लेकिन फ़िर उसे अमेरिका जाने का भुत सताया 

इस बार और भी बड़ा रेजुमे बनाया 
सच कम कर झुट का वजन बढाया 
अमेरिका भेजने वाली कम्पनी में नौकरी भी पाया 
लेकिन हर प्रोजेक्ट में मैनेजर ने उसको बुध्धू बनाया  

इधर घर में हो रहा था हलाकान
उनका लड़का हो गया था जवान 
दोस्त उसके अपनी शादी का कार्ड छोड़ जाते 
उसके माता पिता को उसकी शादी की याद दिलाते 

बाबु ने भी थी कसम खायी 
जब तक पासपोर्ट पर न सील लगवाई 
शादी के फेरे न लूँगा मैं 
चाहे पुरी दुनियां की लड़कीयां बन जाये परजाई 

सब्र का फल मीठा होता हैं 
हर ऐरे गैरे का भी दिन होता हैं 
अमेरिका पहुँच गया वो अतलंगी
बाबु से बन गया बाबु फिरंगी 

अब चहु ओर फैला उसका चर्चा
डालर में जो हो रहा था खर्चा
शादी की भी उसने अब सोची 
घरवालो ने एक सुन्दर सी कन्या खोजी 

थोड़ी चैटिंग फ़िर फ़ोन लगाया
फेसबुक में भी फ्रैंड बनाया 
उसका आव भाव बाबु को भाया
उससे मिलने वो इंडिया आया 

अब हो जाएगी शादी ऐसी थी आशा 
आखिर उसके पास था वर्किंग वीसा 
क्यूँ कोई उसको पसंद ना करेगा
ऐसा होनहार लड़का कहाँ मिलेगा 

कॉफी शॉप में लगा था मेला 
मेले के बीच खुश था अलबेला 
पहली मुलाकात प्यार था पहला 
क्या पता था कटेगा उसका केला 

कन्या ने पहले तो शौक एवं रुचियों का राग सुनाया 
फ़िर अपने उसके घरवालो का महाकाव्य पढवाया 
फ़िर बोली लगे तुम अच्छे, मन के सच्चे, लेकिन एक बात बताऊ 
पहले से थी ठान रखा हैं, विदेश में रहने वाले के साथ न ब्याह रचाऊ

बाबु, फिरंगी बना था कैसे 
जोड़ तोड़ और जैसे तैसे
आज इसी ने उसको लुटवाया
मन के मीत ने उसको ठुकराया 

Tuesday, August 21, 2012

प्रोटोकॉल

मीटिंग में फरमान आया
साहब का फ़ोन घनघनाया
श्रीमान जी बोले व्यस्त हूँ
मीटिंग में बीच में पस्त हूँ
थोड़े देर में कॉल बैक करता हूँ
पहले कार्यालय के भूतो से निपटता हूँ
निविदा नीलामी के फाइलो में 
साहब का दिन गुजर गया 
कॉल बैक का आश्वासन 
मीटिंग की तरह अधुरा रह गया 
जब पहुंचे घर तो
घर में सन्नटा पाया
सास बहु की सीरियल में
साजिशो का अंबार पाया 
कुछ न पूछा कुछ न बताया 
श्रीमती जी ने किचन में कदम बढाया 
श्रीमान जी को हुआ अंदेशा 
खाने पर है आज जलने का साया 
कुछ तो किया हैं
लेकिन कुछ याद न आया
जानने के लिए बीवी की
तारीफों का कसीदा सुनाया
दो तीन रोटियों के जलने के बाद
मेहनत का फल सामने आया
जब गड़े पुराने किस्सों का
बीवी ने ताना सुनाया
फिर आयी वो मुद्दे पे
जब इस बार का गुनाह बताया
किया था तुमको फ़ोन
तुमने सौतन मीटिंग के लिए
मुझको ठुकराया
आगे से ऐसा न करना
पहले मुझसे बात ही करना
नहीं तो ऐसे ही शाम को पछताओगे  
न टीवी देख पायगे
न खाना खा पाओगे
शादी का था प्रोटोकॉल समझाया
जब श्रीमती जी ने था फोन घुमाया

इश्क

फूल, फूल से लगते हैं
चाँद, चाँद सा लगता हैं
चेहरा कोई नज़र आता नहीं
भीड़, भीड़ सी लगती हैं
आवाज़े, शोर सी लगती हैं
अनजान कोई अपना लगता नहीं
क्यूँ हमको इश्क होता नहीं
 
किसी शाम को कभी कभी 
इश्क का बुखार सा लगता हैं
उलटी सीधी शायरी वाला  
खांसी का दौरा भी पड़ता हैं
बिना दवा के ठीक हो जाये 
मर्ज़ ये भी रहता नहीं  
क्यूँ हमको इश्क होता नहीं

Saturday, July 21, 2012

कसम

सागर को नापने से 
रोकने की कोशिश की हैं 
पानी में दौड़ने वालो को
बांधने की कोशिश की हैं 
साजिश ये बादलो और 
लहरों ने मिल के की हैं
लेकिन हमने भी तैरते 
रहने की कसम ली हैं 

कश्ती को हिलाने लहरे
और ऊँची आ भी जाए 
काले बादलो से बिजली 
की ललकार आ भी जाये 
हिम्मत को हराने कोई 
बड़ा तूफ़ान आ भी जाये 
लेकिन हमने भी लड़ते 
रहने की कसम ली हैं
 
Photocourtesy Grishma Shah

Thursday, July 19, 2012

चाँद के साथ

तेरी जुल्फे तेरी मुस्कराहट तेरे बहाने
तेरी अदाएं तेरे नखरे तेरे फ़साने
आज करते रहे तेरी बात चाँद के साथ
 
कोई पुरानी ग़ज़ल याद में तेरी
कोई अपनी ही लिखी आधी अधूरी
आज लिखते रहे नज़्म चाँद के साथ
 
तेरी खिड़की से नज़र आते होंगे
सारी रात पहचानते रहे ऐसे तारे  
आज जागते रहे हम चाँद के साथ
 
रातरानी की खुशबू में जैसे खोये
चांदनी रौशनी में डुबोये हुए
आज भींगते रहे हम चाँद के साथ
 
उड़ते बादलो में देखी निशानी  तेरी
खोजते रहे कहीं लब कहीं आँखे तेरी  
आज बनाते रहे तस्वीर चाँद के साथ

Saturday, July 14, 2012

शब्दों का जाल

ख़ुशी या गम सब तेरे ही
मैं कोई अहसास न जानु  
जानी अनजानी मंजिले तेरी ही  
मैं तो आवांरा रास्तो पर भटकू  
कहता फिरता इधर उधर की
मैं खुद  अपने बारे में न जानु 
अर्थ जो निकल पाए वो तेरे ही 
मैं तो बस शब्दों का जाल बिछाऊ  
 
होली में शब्दों के रंग उड़ा दू 
राखी में शब्दों के धागे बांधु  
दीपक दिवाली में शब्दों के जलाऊ 
मिठाई की जगह मीठी बात बताऊ 
त्योहारों के मज़े सारे तेरे ही
मैं तो बस तुझको याद दिलाऊ 
जितनी यादें जहन में आये वो तेरी ही
मैं तो बस शब्दों का जाल बिछाऊ
 
बनते बिगड़ते रिश्ते तेरे ही
मैं तो बस रिश्तो की बात बताऊ 
रूठने मनाने के बहाने तेरे ही
मैं तो बस पुराने पन्ने पलटाऊ  
मेरा एक ही रिश्ता शब्दों संग यारी  
बस मैं अपना रिश्ता इनसे निभाऊ
शब्द जो रिश्ते बचा पाए वो तेरे ही
मैं तो बस शब्दों का जाल बिछाऊ 

Monday, July 09, 2012

तुने देखा होता

ना थी हमारी किस्मत, तो ये किस्मत ही सही
जाना ही था एक दिन, तो तेरा जाना ही सही
थी यहाँ तक बस तो, छोटी ये कहानी ही सही
पुरे ना हो सके कुछ, झूटे कुछ टूटे वादे ही सही
लेकिन कम से कम, एक अहसान तो किया होता   
जाते वक़्त एक बार, मुड़ के तो तुने देखा होता
हम तेरी मज़बूरी का, कोई अंजान बहाना बना लेते  
की होगी तुने पूरी कोशिश, सोच के जिन्दगी बिता देते 

वियोग रस

कवि तुम बड़े हो निष्ठुर प्राणी
विरहन ही तुमको नज़र है आती
वियोग का रस ही पीते हो
और बताते उसको दुखियारी
 
क्या मैं स्त्री ये न जानु
कैसे विरह का खेल रचा
एक पुरुष ने दुःख दिया तो
दूजे ने उसपे गीत लिखा
 
जब किसी पुरुष से जीवन  
का दर्द ना सहा गया
मैखाने में शाम रात हुई
तब उसपे कुछ न लिखा गया
 
मंदिर मस्जिद से बेहतर बोला
पावन कर दी मधुशाला 
दहलीज के जो भीतर बैठी रही
उसके दिल का राज़ ही खोला
 
खोजो शब्दों में सार्थकता
फिर तुमने क्यों ये भेद रचा
जिसकी याद में रोते हो
क्यूँ कहते उसको बेवफा

Thursday, May 17, 2012

हंगामा

बिगड़े हालत पर ना होना हताश
खुद की बातों पे ही खुश रहना 
जब तक तुमको फर्क न पड़े 
क्यों कुछ बदलने की हिम्मत करना 
क्यूंकि हिम्मत करने से होता है हंगामा
और तुमको हंगामे की आदत नहीं 

सोचते रहना और कहते रहना
बात बात पे बहस भी करना
खुद को पढा लिखा साबित करना
बस जितना पढ़ाया उतना ही जानना 
क्यूंकि ज्यादा जानने से होता हैं हंगामा
और तुमको हंगामे की आदत नहीं 

कोई और मरे, कोई और लड़े
जिसको कूदना है वो आग में कूदे
तुम तो बस आराम से रहना 
बस अपने रास्तो पर ही चलना 
क्यूंकि रास्ते बदलने से होता है हंगामा
और तुमको हंगामे की आदत नहीं 

सत्ता, कुर्सी, पैसा या फिर रुतबा
कोई लूटे अकेला, कही है पूरा कुनबा 
लेकिन फिर भी तुम चुप ही रहना 
अपने दरवाजों को बंद ही रखना 
क्यूंकि सच कहने से होता है हंगामा
और तुमको हंगामे की आदत नहीं

Friday, May 04, 2012

साली की सगाई

साली ने पुछा दीदी से 
मेरी सगाई और जीजा नहीं आये 
कहते थे आधी घरवाली 
क्या मेरे वियोग के दुःख से नहीं आये 
कहना उनसे मैं थी रूठी 
अब मुझको मनाने फ़िर से ना आये 
मेरे प्रियतम भी दामाद बने  
अब पहले सा ना अपना रुबाब दिखाए 

आते वो भी साथ
मगर हालत कुछ ऐसे बन गए 
आना पड़ा मुझे अकेला
वो अपनी साली की सगाई में नहीं आये 
दीदी बोली अपनी व्यथा 
मुझको भी बड़े शहर में अकेले छोड़ गए 
क्या कहू मैं तुमसे बहना
तुम्हारे जीजा तो है विदेश गए 

Tuesday, April 10, 2012

राखी के धागे


कभी गुड़ियों का घर भी न संभल पाता था 
अब घर की बातो में सुबह से शाम हो जाये 
बची हुई आखिरी मिठाई के लिए जो लड़ता था 
अब उसने मीठा खाया कि नहीं ये ख्याल सताए 

कभी पिताजी के बगल की कुर्सी पर जताते थे हिस्सा 
तो कभी किसे ज्यादा प्यार करती हैं माँ इसका झगड़ा 
कभी संग बैठने पर भी जिनको आता था गुस्सा
अब मिलने के लिए किसी त्यौहार की आस लगाये 

लड़ते लड़ते ना जाने कब वो भाई बहन बड़े हो गये 
उनके गुड़िया, गाड़िया और बंदूके पुराने हो गए 
छोड़ बचपन का घर वो दोनों दूर चले गए 
लेकिन फिर भी राखी के धागे बंधे रह गए  

Sunday, April 08, 2012

संसद


जिनको चुनके भेजा था अब खुद ना चुन सके वो नेता 
लोकतंत्र में कोई भी पार्टी बेटा ही होगा सबका नेता 
वोटो की गिनती के बाद अपने वादों को भुला चुका 
घोषणाओं का वो पिटारा जीत के जश्न में जला चुका  
अब शुरू होना है उनके संघर्ष का एक नया किस्सा 
आशाएं है बहुत उनकी अब होगा उनका भी हिस्सा 
आम जनता को भूले दुर दराज़ के निकले रिश्ते नाते  
इनके उनके नामो से नित नए बैंको में खुल रहे खाते 
संसद से नदारद फ़िर भी मुद्दा बनाने न्यूज़ सेंटर आता 
समितियों से बना दिया है जैसे हर संसोधन का नाता
करने को बहस आते लेकिन अंत में फाड़ देते हैं परचा
हूटिंग करते मगर वोटिंग से पहले मांगे अपना खर्चा 
सबके अपने तरीके कुछ को वाक् आउट पसंद आता 
बाहर जाने का शौक है इतना फ़िर वो अंदर क्यूँ आता 
अब ना रहे वो लड़ने वाले अब नहीं रहीं वो लोकसभा
बिकते वोटो के बीच कहीं थोड़ी बिकती है राज्यसभा

Saturday, April 07, 2012

अरमान मेरे


आखों में शरारत
और होठों से बहाने बनाया ना करो 
जुल्फों को बांधो
हवां के साथ यूँ उड़ने दिया ना करो 
ओ हुस्न की मलिका
इस तरह सामने आया ना करो
अरमान मासूम है मेरे 
इनको बेईमान बनाया ना करो  

चलते हुए यूँ अचानक 
गहनों की दुकान पर रुका ना करो
उठा के तरह तरह की 
बालियाँ कानो से लगाया ना करो 
हर बार अपने रूप की 
छटा यूँ राहों पर बिखराया ना करो 
अरमान मासूम है मेरे 
इनको बेईमान बनाया ना करो  

आइना बन जाता है वो 
रात में तुम चाँद को निहारा ना करो   
तारे भी दीवाने तुम्हारे 
तुम ऊँगली दिखा के उन्हें इशारे ना करो 
मंद रौशनी में तुम 
रातरानी की तरह महका ना करो 
अरमान मासूम है मेरे 
इनको बेईमान बनाया ना करो  

Wednesday, March 21, 2012

कवितायेँ मेरी पढ़ती हो


शब्द मेरे कागज़ के फूल 
खुशबू तुम ले आती हो 
छंद मेरे ठहरा हुआ पानी 
लहरे तुम ले आती हो 
कवितायेँ मेरी अधुरी सी 
सार्थक तुम बना देती हो  
लिखने की वजह मिल जाती है  
जब भी कवितायेँ मेरी पढ़ती हो

किसी संजीदा बात पे 
आखें नम कर लेती हो 
भावुक होकर अब ना पढूंगी 
जब भी ऐसा कहती हो 
लिख लेता हूँ कुछ ऐसा 
लगता है जो हँसने जैसा  
व्यंग्य पढ़ कर मेरे
जो मुस्कुरा देती हो 
लिखने की वजह मिल जाती है 
जब भी कवितायेँ मेरी पढ़ती हो

लिखता रहूँगा मैं तो ऐसे ही 
कुछ तुम भी पसंद कर लेना
जो बात समझ में ना आये 
बकवास समझ कर भुला देना
बस याद रखना इतना ही
मेरा लिखा तो बस जीवन की बाते
बातो में जीवन तुम लाती हो 
लिखने की वजह मिल जाती है  
जब भी कवितायेँ मेरी पढ़ती हो

Friday, January 27, 2012

रात का दर्द


रात के अँधेरे को  
निराशाओं का मायने न बना दिया होता 
हमेशा तुमने बस 
इसके बीत जाने का इंतज़ार न किया होता 
रौशनी के लिए 
बस आने वाले दिन का आसरा ना लिया होता 
जो तुम कुछ और सुन पाते 
तो समझ जाते एक अकेली रात का दर्द 

दूर कहीं बैठे 
सितारों से लिपटी फिर भी दूर ही रहती 
चाँद भी इसका 
कभी आधा कभी पूरा तो कभी अमावस्या 
रतजगो में फंसे 
रात के मुसाफिरों ने भी इसको कोसा 
जो तुम कही ठहर जाते 
तो समझ जाते एक अकेली रात का दर्द