About Me

I write poems - I m going towards me, I write stories - किस्से ओमी भैय्या के, I write randomly - squander with me

Sunday, November 18, 2007

future song

खवाब मेरे जाने क्यों धुआँ बनके उड़ गए
जिन आंखों से सजाया था उन्ही से देखते रहे

तिनका तिनका था जोडा आशियाने क लिए
आंधी ने यह न सोचा एक पल क लिए
बिखर गए सब जैसे कोई रिश्ता न हो
रह गई सुनी डाल मुझपे तरस खाने को

दर्द से दिल चीख भी नही पाया
और मेरे कातिल मुझपे हँसते रहे

Wednesday, October 31, 2007

naqab

पहने रहा यह नकाब कुछ ऐसे
अब पास मेरे सिवा इसके कुछ नही
था शयद मेरा भी कोई निशान कही
मुझे अब अपनी ही शकल याद नही

नज़र जैसे सबकी मेरे नकाब पर है
अपने नाक़बो से उन्हें नफरत ऐसी है
किस कलाकार ने बनाया है इसे पूछते है
कहता ह ज़माने ने दिया है तो हस्ते है
जब आया था यहा तो मांस का टुकडा था
आज ज़माने ने इन्सान बना दिया है मुझे
सिखाई मुझे सब लोगो ने उनकी ही जुबान
आज कहते है मेरे अल्फास नए से क्यों है
साजिश है मेरे नकाब को छीनने की यह
उनके नकाब अब शिशो से साफ जो है

कहता है ज़माना एक बात बता दे
तू चीज़ क्या है हमे समझा दे
कहता था पहले तू क्यों हमसा नही है
बना इसके तरह तो अब यह वैसा नही है
अगर हर शकल यहा नकाबपोश है
तो मेरे नकाब से ही यह सवाल क्यों है

Sunday, October 21, 2007

duriya

मालुम न था यह बात इतनी बिगड़ जायेगी
दो पल कि यह दुरी इतनी बड़ी हो जायेगी

रोका नही था यह सोच कर
ख़ुद ही लौट आयोगे
मेरे नही तो कम से कम
अपने दिल की ही मान लोगे
मालुम न था दिल की बात बेअसर हो जायेगी
दो पल कि यह दुरी इतनी बड़ी हो जायेगी

हम जो देना चाहे आवाज़
तो तुम हो जाने कहा
परछाइंया भी न आए नज़र
अँधेरा यह छाया कैसा
मालुम न था प्यार कि रौशनी मद्धम हो जायेगी
दो पल कि यह दुरी इतनी बड़ी हो जायेगी

Saturday, October 20, 2007

sharabi

अगर शराब है खत्म तेरे मैखाने मे
तो नज़रे मिला के पानी ही देदे जाम मे
किसको चड़ता है नशा यहा पीने से
हमको तो नशा है तेरे इश्क मे जीने से

है बहूत बड़ा यह शहर
इसमे मैखाने और भी है
नए नही इस शहर मे जो
बाकियों से हम अनजाने है
बहाना है पीना जो आते है तेरे मैखाने मे
तरसे हुए है सुकून पाते है तेरे दीदार मे

जानते है तुझे हमसे कोई वास्ता नही
मैं तेरे लिए एक शराबी ही सही
खाली यह जाम हँसता है मुझपे
इसकी चुभती हसी को एक हद देदे
ज़िंदगी नही तो मौत का ही जाम दे
पानी भी नही तेरे पास तो साकी जहर देदे
बहूत है गलिया शहर मे लड़खडांने क लिए
आज लड़खडाने से पहले सम्हाल ले तेरे मैखाने मे

Saturday, June 30, 2007

Zinda

रौशनी और अंधेरो का फर्क महसूस नही होता
सन्नाटे मे अकेला मेरा दिल ही है चिखता
सांसें चलती है जैसे कोई क़र्ज़ चुकाने को
जलता है मेरा बदन मुझको यह बताने को
की मैं जिंदा हू

एक वही लम्हा जी रहा ह मैं बरसों से
खुलती है मेरी आँखें इन्ही दीवारों मे
मरने क लिए मैं क्या नही करता
नाकामयाब कोशिश यह कहती है
की मैं जिंदा हू

कोई तो जनता होगा आख़िर यह कैसी कैद है
मेरे इंतज़ार की क्यों नही कोई हद है
खुदा तुझपे ही अब रह गया भरोसा
तू ही बता यह तेरी राजा है या कोई गलती
की मैं जिंदा हू

Wednesday, May 23, 2007

meri zindagi

मेरी ज़िंदगी मुझे दूर ले आई
मेरा न कोई माजी रहा
हर कोशिश होती गई कामयाब
मेरा न कोई रास्ता रहा

मंजिले मिलती रही हरदम मुझे
खवाब होते रहे उम्मीदों से बड़े
ज़िंदगी मुड्गायी जिस तरफ़ देखा
मेरा न कोई मंजर रहा

यार सब कही खो से गए
प्यार किताब मे दब से गए
मशरुफ़ रहा कागजों मे इतना
मेरा न कोई अहसास रहा

दिल चाहे रोना तो कोना कहा है
जिसपे रखे सिर वह कन्धा कहा है
मिलता रहा इतनो चेहरों से रोज़
मुझे कोई चेहरा याद न रहा

मेरी ज़िंदगी मुझे दूर ले आई
मेरा न कोई माजी रहा
हर कोशिश होती गई कामयाब
मेरा न कोई रास्ता रहा

Sunday, March 25, 2007

moksha

मैं ही ब्रम्हा विष्णु हू मैं हू शिवा
मेरे ही कंठो मे समाया हलाहल सारा

विस्मित करती सबको जो यह है धरा
गगन का बैठाया जाल उसपे सारा
ललचाने को तुझे मैं सितारे चमकता
चाँद और सूरज को देता मैं ही उजाला

रंग सरे मैंने रंगे फूलों को महकाया
वायु को बहने के लिए दिशा ज्ञान समझाया
नदियों को मोडा है ऐसे की जंगलो को सींचा
गहरी खाई ऊँचे पहाडो का मैं ही रचियिता

मनुष्य का मन है मेरा ही आविष्कार
मोहमाया मे देखता है तू सारा संसार
खोल नयन देख कौन खड़ा है उसके पार
तू है मेरा ही अंश मैं तेरा साकार

मैं ही ब्रम्हा विष्णु ह मैं ह शिवा
सारा जग मुझे है और मैं तुझमे समाया

ranbhoomi

देखो यह रणभूमि है

हर यहा मृत्यु शैया
जीत रात भर का आशीर्वाद है
सुबह लाती ललकार शत्रु की
साँझ सूचना घायलों की
मरने वालो कि पहचान कहा है
साबुत मिले वह शव कहा है
यहा लहू कि कहा कमी है
देखो यह रणभूमि है

गर्जन करते आगे बड़ते है
अपनी वीरता का दंभ भरते है
देखे महावीर जो कल लड़ते थे
आज खुले नयनो से सोये है
महत्वाकांक्षा के बलि हुए वह
बचे हुए फिर भी चलते है
जितने की ही सबको पड़ी है
देखो यह रणभूमि है

कुछ के पास अनुभव बहुत है
कुछ सीधे आँगन से आए है
मानव के सारे समंध भूल के
अपनी आंखों मे लहू लाये है
टपके पसीना शरीर से बाद मे
पहले इनका लहू बहता है
तलवार यहा अब किसकी सुखी है
देखो यह रणभूमि है

Tuesday, February 13, 2007

when i was old

ढलती रही मेरी उमर धुप की तरह
आई नज़र ज़िंदगी एक दिन शाम की तरह

जब देखा पीछे तो घर नही था
कोई रास्ता कोई नुक्कड़ नही था
बस हाथ उठाया जो किसी के तरफ़
लौट आया ख़ुद ही कटी पतंग की तरह

मेरे बचपन मेरे जवानी की
जैसे कोई अधूरी कहानी सी
कितने बाते याद आने लगी
सब यू ही आखें गीली करनी लगी
छुने की कोशिश जो की एक अहसास को
उड़ गया वह किसी खुशबू की तरह

आज मेरी तरह यहा और भी है
सबके कल थे अलग आज एकसे है
हर किसी ने कुछ पाया था कभी
आज सब है खाली मुठी की तरह

ढलती रही मेरी उमर धुप की तरह
आई नज़र ज़िंदगी एक दिन शाम की तरह

Friday, February 02, 2007

you n me

you are the son of the king
and you may think
this world is so great
everyone is here friend
they offer u sweets
when you comes on streets

I m the son of a farmer
for me this world is harder
when I wander in roads
they call me ghost
when I look into there shops
they show me way to rocks