About Me

I write poems - I m going towards me, I write stories - किस्से ओमी भैय्या के, I write randomly - squander with me

Thursday, February 21, 2013

गली

गली वो जो मेरे बचपन से शुरू होती थीं
संग मेरे दोस्तों के दौड़ा करती थीं
सूखते आवलों और पापड़ों से
खुद को संग हमारे बचती बचाती
कभी चोर पुलिस तो लुक्का छिप्पी
शोर मचाने पर बूढी दादी की डाट खाती
गली वो सोचता हूँ 
अब न जाने कैसी होगी
क्या अब भी बारिश में
वो किसी छज्जे में छुपती होगी
 
गली वों जिसने जगह दी थी
आवारों कुत्तों को
हमने भी नाम दिए थे उन
मासूम पिल्लो को
सबके मना करने पर भी
वो उनके साथ खेलती थीं
कभी किसी की गाय को यूँ ही
अपने पास बिठा लेती थी
सोचता हूँ अब न जाने किसका राज़ होगा
कालू कुत्ता तो अब बुढा होगा
 
गली वो जो फेरी वालों की
आवाजों से गूंजा करती
गर्मियों की जलती धुप में
बच्चे पकड़ने वालो से डरी सहमी रहती
गली वों जिसमे दरवाज़े
अंदर की तरफ खुलते थे
हर खटखटाहट चाय पिलाने
का न्योता देते थे
गली वो जिसमे सुबह
सब पानी के लिए लड़ते
शाम को साथ बैठ कर 
सब्जियां थे काटते
और रात को वो गली
पहरा देती थी चौकीदार के साथ
 
मेरे पुराने शहर की वो गली
जिसे आज शहर ने भूला दिया
सबने अपना हिस्सा लेकर
उसको अपनी जमीं में मिला दिया
नए शहर की चका चौंध में
घर सबने बड़ा बना लिया
लेकिन किसी ने भी लोगो को
अपनाना नहीं सिखा
हड़प ली उसकी सारी चीज़े  
उसके दिल सा धड़कना नहीं सिखा   
 

Friday, February 08, 2013

सर्द ये मौसम हैं

ठंडी हवा हौले से छूती हैं 
ओंस की बुँदे खिलखिलाती हैं 
खेले कोहरा आँख मिचौली 
सूरज की किरणे भी बादलों में खो जाती हैं 
जो पूछा सुबह की धुप से 
क्यूँ हों तुम अलसायी सी 
बोली कैसे उड़ा दू ओंस की बुँदे 
वो मेरी भी मन भायी सी
देखो ये कैसा आलम है 
सर्द ये मौसम है 
 
उँगलियों के पोरों पे ठिठुरन 
गालों में छायी लालिमा 
हथेलियों को रगड रगड कर 
मुहँ से फेंके सब धुआँ
खुद में सिमट कर 
छोटे होने की होड़ लगी हैं 
खेल ये खेल रहे सब  
क्या बुढा और क्या बच्चा
देखो ये कैसा आलम है 
सर्द ये मौसम है