About Me

I write poems - I m going towards me, I write stories - किस्से ओमी भैय्या के, I write randomly - squander with me

Monday, July 09, 2012

वियोग रस

कवि तुम बड़े हो निष्ठुर प्राणी
विरहन ही तुमको नज़र है आती
वियोग का रस ही पीते हो
और बताते उसको दुखियारी
 
क्या मैं स्त्री ये न जानु
कैसे विरह का खेल रचा
एक पुरुष ने दुःख दिया तो
दूजे ने उसपे गीत लिखा
 
जब किसी पुरुष से जीवन  
का दर्द ना सहा गया
मैखाने में शाम रात हुई
तब उसपे कुछ न लिखा गया
 
मंदिर मस्जिद से बेहतर बोला
पावन कर दी मधुशाला 
दहलीज के जो भीतर बैठी रही
उसके दिल का राज़ ही खोला
 
खोजो शब्दों में सार्थकता
फिर तुमने क्यों ये भेद रचा
जिसकी याद में रोते हो
क्यूँ कहते उसको बेवफा

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