About Me

I write poems - I m going towards me, I write stories - किस्से ओमी भैय्या के, I write randomly - squander with me

Saturday, September 08, 2012

भारत के वीर

भाषणों से उद्देलित हो कर 
तुच्छ चिंगारी में ज्वलित हो कर 
भीड़ की आंधी बन जाते हो 
भारत के निर्माता तुम 
कैसे अन्यायी लोगो के हाथों  
आखिर प्यादे बन जाते हो 
पाखंडी चेहरों को देखना सीखो 
छुपे उद्देश्य को जानना सीखो 
छोड़ के अपनी चिर निद्रा  
भारत के वीर अब तो जागो 

भारत का स्वर्णिम इतिहास 
दबा रहे कैसे किताबो में 
जो सोचा होता यहीं आज़ाद ने 
क्रांति के अध्याय कैसे जुड़ पाते 
न रहो पढ़ते सही गलत के चिट्ठे 
उचित अवसर की राह न देखो  
समय सदा उचित ही रहता 
देश हित में कुछ नया गड़ने को 
अपना स्वर्णिम भविष्य मांगो 
भारत के वीर अब तो जागो 

जन्म लिया स्वतंत्र धरती पर 
फ़िर भी दुराचार की है पराधीनता 
बिस्मिल जैसा नहीं तुम्हे संताप 
फ़िर भी हर युग की होती अपनी चिंता 
जो ना कर सकते त्याग भगत सा 
पुष्प कुमार भी ना बन बैठो 
जितना साहस हो उतना लेकर 
बेहतर भारत की ओर कुच करो  
देश हित में अब ललकार करो 
भारत के वीर अब तो जागो 

पूछ सकते हो सवाल बहुत 
बूढी होती पीढ़ियों को 
जान सको तो जानो 
उनकी की हुई गलतियों को 
आने वाली पीढियां पूछेगी कितने सवाल 
आज ही सारे उनके जवाब लिख दो   
फ़िर से वहीँ काली रात ना आये 
हृदय जलाकर कर सूर्य बनो 
सूर्य न बन सकते तो दिए बन जाओ  
भारत के वीर अब तो जागो 

Friday, September 07, 2012

तुम्हे

तुम ख्वाब सी खुबसूरत कैसे 
कैसे हो मेरे ख्यालो जैसी 
क्या किसी ने चुरा के मेरे राज़ 
तुम्हे वैसे ही बनाया हैं 

तुम भीड़ में खो भी नहीं जाती  
मिल जाती हो इतफाक से हर कहीं 
क्या किसी ने चुरा के मेरे रास्ते
तुम्हे उन्ही रास्तो पर चलाया हैं   

तुम्हारी मुस्कराहट दिल को छूती 
आखों को तुम्हारी हंसी जगमगा देती
क्या किसी ने चुरा के मेरे हसीं पल 
तुम्हे ये सब बताया हैं  

जिंदगी कट रही थी यूँ ही 
की फरिश्तो से गुज़ारिश कितनी 
क्या किसी गुज़ारिश ने पुरी हो कर 
तुम्हे धरती पे बुलाया हैं 

Wednesday, September 05, 2012

अंतिम सवांद

प्यार ऐसा भी क्या, जो फिर दिल पछताए
दे न पाउँगा कुछ भी, झूटे वादों के सिवाए
ख्वाब न सजाओ जो, तुमको कल रुलाये
जो कल आंसू आयेंगे तो पोंछ भी न पायोगी
 
अपनों के भेष में छुपे, सब अदाकार हैं पराये
आओ न मेरी दुनिया में, वीराने के हैं साए
तुम्हारे अहसास सारे, हालात से कुर्बान न हो जाये
जो कल अहसास न होंगे, तो कुछ कह भी न पायोगी
 
क्यूँ मेरे साथ कोई, पत्थर पर नंगे पाँव चले  
ज़िन्दगी की धुप में, क्यूँ कोई और संग तपे
कमसिन उम्र ये क्यूँ, लू के थपेड़ो में जले
जो कल उम्र झुलस गयी, तो क्या न पछ्तायोगी
 
अभी इश्क के मौसम, गायेंगे और भी तराने
तेरे हुस्न के होंगे, और भी बहुत से दीवाने
फिर दिल में कोई, आएगा अपना घर बसाने
जो कल दिल ही टुटा, तो फिर किसे बसा पायोगी  

Sunday, September 02, 2012

बाबु फिरंगी

बाबु, फिरंगी बना कैसे 
पहले तो था केवल बाबु
नाम का था इंजीनियर 
मजदुर था वो प्लांट के बाजु 

एक दिन सूझी उसको खुराफात 
मार के लगी लुगाई नौकरी को लात 
आ पहुंचा बैंगलोर एक रात
बोला अब सोफ्टवेयर ही मेरी जात 

पहले दोस्तों संग दोस्ती निभाई 
पराठो और दारू में बचत गवाई
आईने ने एक दिन हकीकत दिखाई  
बढ़ी हुई दाढ़ी के साथ जब थोड़ी अकल आई 

बना के रेज़ुमे बड़ा वाला 
थोड़ा सच थोड़ा झुट वाला 
खटखटाया हर कम्पनी का दरवाजा 
लेकिन कोई न खोले उसके लिए ताला

एक स्टार्ट अप ने बोला अंदर आ जाओ
पैसे का छोड़ो काम में मन लगाओ 
थोड़े दिन तो ऐसे ही बाबु का मन बहलाया 
लेकिन फ़िर उसे अमेरिका जाने का भुत सताया 

इस बार और भी बड़ा रेजुमे बनाया 
सच कम कर झुट का वजन बढाया 
अमेरिका भेजने वाली कम्पनी में नौकरी भी पाया 
लेकिन हर प्रोजेक्ट में मैनेजर ने उसको बुध्धू बनाया  

इधर घर में हो रहा था हलाकान
उनका लड़का हो गया था जवान 
दोस्त उसके अपनी शादी का कार्ड छोड़ जाते 
उसके माता पिता को उसकी शादी की याद दिलाते 

बाबु ने भी थी कसम खायी 
जब तक पासपोर्ट पर न सील लगवाई 
शादी के फेरे न लूँगा मैं 
चाहे पुरी दुनियां की लड़कीयां बन जाये परजाई 

सब्र का फल मीठा होता हैं 
हर ऐरे गैरे का भी दिन होता हैं 
अमेरिका पहुँच गया वो अतलंगी
बाबु से बन गया बाबु फिरंगी 

अब चहु ओर फैला उसका चर्चा
डालर में जो हो रहा था खर्चा
शादी की भी उसने अब सोची 
घरवालो ने एक सुन्दर सी कन्या खोजी 

थोड़ी चैटिंग फ़िर फ़ोन लगाया
फेसबुक में भी फ्रैंड बनाया 
उसका आव भाव बाबु को भाया
उससे मिलने वो इंडिया आया 

अब हो जाएगी शादी ऐसी थी आशा 
आखिर उसके पास था वर्किंग वीसा 
क्यूँ कोई उसको पसंद ना करेगा
ऐसा होनहार लड़का कहाँ मिलेगा 

कॉफी शॉप में लगा था मेला 
मेले के बीच खुश था अलबेला 
पहली मुलाकात प्यार था पहला 
क्या पता था कटेगा उसका केला 

कन्या ने पहले तो शौक एवं रुचियों का राग सुनाया 
फ़िर अपने उसके घरवालो का महाकाव्य पढवाया 
फ़िर बोली लगे तुम अच्छे, मन के सच्चे, लेकिन एक बात बताऊ 
पहले से थी ठान रखा हैं, विदेश में रहने वाले के साथ न ब्याह रचाऊ

बाबु, फिरंगी बना था कैसे 
जोड़ तोड़ और जैसे तैसे
आज इसी ने उसको लुटवाया
मन के मीत ने उसको ठुकराया