About Me

I write poems - I m going towards me, I write stories - किस्से ओमी भैय्या के, I write randomly - squander with me

Saturday, October 20, 2012

धुप

आये हैं हमारे आंगन
रुई से चमकते बादल  
जैसे धो के अभी सुखाया हैं 
गगन भी जैसे अभी ही नहाया हैं  
अच्छी खुशबू आती मिट्टी से 
पानी की बुँदे लटकी पत्ती से  
देखो जैसे सूरज टुट गया बूंदों में 
और ये बुँदे ही फैलाती रौशनी जग में 
छोटी छोटी नदियाँ बहती 
आंगन में चांदी सी चमकती 
बारिश के बाद बतलाओ 
धुप होती हैं क्यूँ इतनी उजली 
अम्मा बाहर तो निकलो 
देखो आयी धुप बारिश में धुली  

Saturday, October 13, 2012

क्या दिल्ली क्या लाहौर

किसी की जिद ने
किसी  की साजिश ने
दीवार खड़ी कर दी
सुबह तो थे भाई भाई    
ये कैसी आयी काली परछाई
कि शाम ने सरहदे तय कर दी
हम और तुम दोनों क्यूँ भूले
क्या दिल्ली और क्या लाहौर
सारी गलियां तो अपनी थी
 
अपने बटवारे पर न काबू
अपनों का ही बहाया लहू
आखिर ऐसी भी क्या दुश्मनी
गोद होती जिसमे सुनी   
सपने होते जिसमे कुर्बान 
ऐसी भी क्या जंग लड़नी
हम और तुम दोनों क्यूँ भूले
क्या दिल्ली और क्या लाहौर
रोती आखें तो अपनी थी
 
लम्बा अरसा बीत गया
कुछ तेरा कुछ मेरा खो गया
फिर भी नफरत की रात न बीती
आ दोनों मिल कर कोशिश करे
कल की सुबह हो उजयारी
फिर से न दोहराएँ वहीँ कहानी
हम और तुम दोनों क्यूँ भूले
क्या दिल्ली और क्या लाहौर
हँसता बचपन तो अपना हैं   

Saturday, October 06, 2012

बड़ा हो गया हूँ

जगने पर भी चादर ओड़ कर
सोचता हूँ माँ आएगी जगाने
भूल जाता हूँ हर सुबह
कि कम्बखत बड़ा हो गया हूँ मैं

रात को करवटे बदलता रहता हूँ
सोचता हूँ माँ आएगी सुलाने 
भूल जाता हूँ हर रात 
कि कमबख्त बड़ा हो गया हूँ मैं

अनसुलझे सवालो को बटोर कर
सोचता हूँ पापा से पूछूँगा
भूल जाता हूँ हर बार  
कि कमबख्त बड़ा हो गया हूँ मैं

दुनिया से लड़ कर आ जाता हूँ
सोचता हूँ भैय्या निपट लेगा सबसे
भूल जाता हूँ हर बार  
कि कमबख्त बड़ा हो गया हूँ मैं

छोटे होने पर थी नाराज़गी
सोचता था जल्दी बड़ा हो जाऊ 
लेकिन इतनी भी क्या थी जल्दी
कि कमबख्त बड़ा हो गया हूँ मैं