About Me

I write poems - I m going towards me, I write stories - किस्से ओमी भैय्या के, I write randomly - squander with me

Friday, January 27, 2012

रात का दर्द


रात के अँधेरे को  
निराशाओं का मायने न बना दिया होता 
हमेशा तुमने बस 
इसके बीत जाने का इंतज़ार न किया होता 
रौशनी के लिए 
बस आने वाले दिन का आसरा ना लिया होता 
जो तुम कुछ और सुन पाते 
तो समझ जाते एक अकेली रात का दर्द 

दूर कहीं बैठे 
सितारों से लिपटी फिर भी दूर ही रहती 
चाँद भी इसका 
कभी आधा कभी पूरा तो कभी अमावस्या 
रतजगो में फंसे 
रात के मुसाफिरों ने भी इसको कोसा 
जो तुम कही ठहर जाते 
तो समझ जाते एक अकेली रात का दर्द 

भूख

भजन सुनाते आते जाते
करते हैं बड़ी बड़ी बाते 
कहते मैं हूँ भविष्य देश का 
और मैं ही हूँ वरदान शिव का 
कभी धरा का इन्सान महान
तो कभी सितारों सा दीप्तमान 
जितने लोग उतनी ही बाते 
सारी यूँ ही बेकार की बाते
कोई नहीं बताता कैसे कमाऊ रोटी
आखिर भूख भी तो कोई चीज़ है होती 

Thursday, January 26, 2012

बूढी माँ

इस बार जब वो शहर से
छुट्टियों में वापस गाँव आया
रसोई में बर्तनों को बिखरा पाया
डब्बो के ढक्कन खुले पड़े थे
माँ की साफ़ रहने वाली रसोई में
तेल के कुछ दाग बिखरे पड़े थे
आधे काले आधे सफ़ेद बालो से ढके
चेहरे पे कुछ झुर्रिया भी थी
काम करते करते थक कर
माँ अक्सर बैठ भी जाती थी
लेकिन सुनकर उसकी फरमाईश
आँखों में चमक पहले सी थी
निकल पड़ी अपना वही पुराना
झोला लेकर सामान खरीदने
इतने दिनों बाद आया है बेटा
उसके लिए गाज़र का हलवा बनाने
लेकिन जब गाजर के हलवे में 
नमक पड़ गया
और स्वाद से वो
नमकीन हो गया 
तब भी रखा उसने याद
हलवे में स्नेह की मिठास
समझ गया वो
अब वक़्त आ गया है
कि अब वो भी बड़ा हो जाये 
माँ की ऊँगली छोड़
अब उसका हाथ थाम ले 
माँ की नज़र अब कमज़ोर हो रही है 
क्यूंकि माँ अब बूढी हो रही है

जिनके खयालो से


एक ख्याल की जगह हो गयी खाली 
जो बात हुई आज पुराने दोस्तों से 
अब पता चला उठ गयी उनकी डोली
अरमान थे रोशन मेरे जिनके खयालो से

हमने सुना दुल्हन के लिबाज़ में 
उस दिन खूब लग रही थी वो 
मेहमानों के भीड़ में जाने 
पहचाने चेहरे खोज रही थी वो 
जब देखा मेरे दोस्त को 
पलकों से ये बात बतायी उसने 
नदी जो तैर आयी आखों में 
उसमे दो बुँदे भी है मेरे लिए   
अब जाना वो भी रोये थे याद करके हमे 
अरमान थे रोशन मेरे जिनके खयालो से

इतने भी दिन तो नहीं हुए 
अपना शहर हमे छोड़े हुए 
जैसे कल ही उसके घर पर 
गए थे कोई बहाना करके
मजाक में उसने कही थी शादी की बात
हमे लगा था हमे रोकने के है तरीके 
काश कुछ और पल उनसे चुराए होते  
अरमान थे रोशन मेरे जिनके खयालो से


(हमारे एक मित्र को समर्पित  )