About Me

I write poems - I m going towards me, I write stories - किस्से ओमी भैय्या के, I write randomly - squander with me

Wednesday, October 18, 2006

my gloomy sunday

सारी रात मैं सोया नही
खुली आंखों मे ही सवेरा हो गया
देखता रहा अपनी छत को
और दूसरा कुछ भी न सोच पाया
मॅन मे भी सपने देखने की हिम्मत नही थी
और दिमाग ने भी कोई दूसरी बात नही सोची
हर पल मैं दर्द सहता रहा
अपने जिस्म के अन्दर उस ज़हर का
कभी सिकुदन सी थी मेरी आंतो मे
कभी खून कही रुक रहा था
साँसें भी अन्दर ही गुम हो जाती
ज़ोर मुझे बाकी न था
सारी रात मैं सोया नही
खुली आंखों मे ही सवेरा हो गया


(It was the suicidal note of the protagaonist)

Saturday, August 12, 2006

the little bird

देखा इस गगन को कई बार रंग बदलते हुए
हर बार लगता है यह है बस छूने के लिए

बैठे है किसी दरख्त मे नज़र रखे दूर सितारों पे
पंख फैलाये एक दिन उड़ने को नया जहा खोजने के लिए

मगर लगता है डर बड़े शिकारियों से
जो बैठे है मुझे कैद करने के लिए

अब जो भी हो अपना जिस्म दाव पे लगा के
लिए हुए उम्मीद उड़ चले हम जानने के लिए

की खुदा ने क्या चुना है मेरे लिए
उसकी ज़मी सारी उमर या अपना आसमा उड़ने के लिए

Friday, April 14, 2006

khanabadosh

चल रहे है राहों मे
मंजिले अभी दूर है
देता है जो ज़माना हमको
वह कहा मंज़ूर है
है अपने खाव्बो का नशा
अब किसे यहा होश है
ज़िंदगी है एक कारवा
और हम खानाबदोश है

Friday, March 10, 2006

voice of failure

काढिंनाइँ चाहे जितनी आए
राहे मुजको मिल न पाए
फिर भी मैं चलूँगा,एक कदम मैं और रखूँगा

पैरो मे जितने चाहे चुभे काटे
हाथ मे हो जितनी भी गरम सलाखे
मैं इनं पहाडो को काटुंगा
सागर मे भी पुल बाधुन्गा
आँसुओ को भी बहना होगा
खुनं बनके पसीना बहेगा
जो धड़कता है इस जिस्म मी
उसके लिए मैं चलूँगा, एक कदम मैं और रखूँगा

सोचता हू मैं जो रुक गया यहा
आगे न फिर बन पायेगा कोई रास्ता
जो आते है मेरे बाद वह जायेगे कहा
आखिर किसी को तो है यहा दफ़न होना
दफ़न होने के लिए मैं चलूँगा,एक कदम मैं और रखूँगा

माना आज मैं नाकामयाब हू
कल भी मेरा शायद न निशान होगा
जब कोई गुजरेगा इन रास्तों से
वही मेरा इनाम होगा
उस इनाम के लिए मैं चलूँगा,एक कदम मैं और रखूँगा

Wednesday, March 01, 2006

i m not smoker

बस एक कश और कशमकश सारी खत्म हो जाती है
थकी हुई मेरी आंखो मे फिर ज़िंदगी नज़र आती है
यह धुआं जाने क्या असर करता मेरी रूह पे
दिल और दिमाग पे ताजगी सी छा जाती है

आसमा पे कितनी लकीरे खीची है इस धुएं ने
मुझे तो तस्वीर बस उसकी नज़र आती है
तुझसे किया था वादा अब हाथ न लगायेंगे कभी
अब तेरी यादों मे ही हर शाम यह जलती है

जब शाम को यह दो उंगलियों पे नाचती है
यारो की महफ़िल कितनी जवा हो जाती है
आज के लिए खुशी का आलम लाती है
कल के लिए कितनी यादें बनती है

आया जो कोई अचानक बगल से
फेका इसे फिर हमने चुपके से
यह बात हमारे बडो को बताती है
की आज भी हममे तहजीब बाकी है

Sunday, February 12, 2006

1 yr after GATE

it was last yr when i was in xam centre fighting with gate paper ,trying to solve them n they are one of the most stubborn things in life .
when i go back, those horror books and nasty question are seems to ask me "kyu bhai kaise ho, kya chal raha hai, humse to nipat liye ab kya karoge" and i give just a smile like an innocent guy .
well about GAte i can write a very little poem (which hardly seems like that)

mare the tukke
ban gaye lukhhe
pahunche iit me
barish ho gayi
mumbai bah gayi
aur dekhe aage