About Me

I write poems - I m going towards me, I write stories - किस्से ओमी भैय्या के, I write randomly - squander with me

Wednesday, December 18, 2013

छलांग

एक छलांग क्या लगायी
तुम्हे लगा हदे हैं बतायी 
कैद कर दिया तुमने 
हमे भी अपनी ज़मी में 

उड़ाने हैं अभी बाकी 
जान तो अभी आयी
साँस तो लेने तो हमे 
पंख फैलाने तो दो हमे 
फिर बताएं क्या हैं
हमारी ख्वाहिशों में 

तड़पते हैं तो जिंदा हैं 
तरसते हैं तो जिंदा हैं 
इस तरह हैं जिंदगी के करीब 
सुकून तो हैं मुर्दों का नसीब
एक ज़रा पूरा हों जाने दो 
फिर बताएं क्या हैं 
हमारे खवाबों में

Saturday, November 23, 2013

शायर के अफसाने


किताबो में नहीं छपते
मुशायरो में सुनाये नहीं जाते  
किसी शेर के शक्ल में सामने भी नहीं आते
शायर के अफसाने तो अक्सर अधूरे ही रह जाते

जब भी कहने को सोचते 
किसी और की ही बात कर जाते 
कुछ तो बाक़ी रह जाता हैं जो भी कहते
शायर के अफसाने तो अक्सर अधूरे ही रह जाते

नज्म में कोई नाम छुपा दे 
फिर उसे चाहने वालो को सुना दे 
उसने सुना होगा कि नहीं बस यही सोचते
शायर के अफसाने तो अक्सर अधूरे ही रह जाते

Saturday, October 05, 2013

दूर चले

I wrote following as lyrics for song with my supposed be band(Oct 2010)This song still in production :)
 
 
हम दोनों खो जाए 
अंजानी राहों में 
दूर चले 
खोजे हम खुद को 
भूल जाये सारी बातें 
दूर चले 

राहों को हम भूल जाये 
खोजे नयी ये दिशाएं 
साथ चले
सूरज के साथ
दिन युहीं डूब जाएँ 
दुबे दिन की 
यादे कहीं 
छोड़ के
दूर चले 

ख्वाब थे जो छुपाएँ 
लम्हे उनसे हम सजाएँ
यादो की रात
सजती रहें 
रोशनी में कहीं 
लुटा के ख्वाब 
सारे युहीं 
दुनिया से 
दूर चले 

Friday, October 04, 2013

शिव की खोज



मन के मंथन से जो उपजा 
बंजर कर दे सारी वसुधा 
ऐसा पश्चाताप का हलालाल 
अंजलि में लिए फिरता हूँ 
कर ले जो जनहित में विषपान 
ऐसे शिव को खोजता फिरता हूँ 

विचारों के धरातल को तोड़ दे 
मेरी सोच की सीमाओ को लाँघ दे 
कर दे मन के टुकड़े टुकड़े 
हर एक टुकड़ा नवजीवन हों 
कर दे विनाश का तांडव 
ऐसे शिव को खोजता फिरता हूँ 

हे ब्रह्म तुम सृजन को तैयार रहों 
मैं आता हूँ अपने मन को लेके 
मृत्यु का आशीर्वाद दे कर 
जीवन की ओर जो मन को भेजे 
पूर्ण करें जो जीवन चक्र को
ऐसे शिव को खोजता फिरता हूँ

Tuesday, July 16, 2013

ओ मुसाफिर

ओ मुसाफिर

मैं तेरी मंजिल 
तेरी नज़रों से ओझिल 
मेरे बिन तू हैं अधूरा
क्यूँ फिरे बनके फकीरा 
अपनी आखों से पूछ मेरा पता 
जिन्होंने संभाल के रखा 
तेरे वजूद का हिस्सा 
जो तू कहीं भुला बिसरा 
तू कहीं थक न जाना 
उम्मीद को न खोना  
तेरी आने की चाह में 
सपने बिछाए तेरे राहों में 
मुझ तक पहुँचने के
इशारे हैं मैंने छिपाए
बस हर कदम ये याद रखना
जो पूरा किया वो ही फासला
जो आगे हैं वो मेरी बंदगी
तुझसे ही पूरी हैं मेरी जिंदगी 

Thursday, February 21, 2013

गली

गली वो जो मेरे बचपन से शुरू होती थीं
संग मेरे दोस्तों के दौड़ा करती थीं
सूखते आवलों और पापड़ों से
खुद को संग हमारे बचती बचाती
कभी चोर पुलिस तो लुक्का छिप्पी
शोर मचाने पर बूढी दादी की डाट खाती
गली वो सोचता हूँ 
अब न जाने कैसी होगी
क्या अब भी बारिश में
वो किसी छज्जे में छुपती होगी
 
गली वों जिसने जगह दी थी
आवारों कुत्तों को
हमने भी नाम दिए थे उन
मासूम पिल्लो को
सबके मना करने पर भी
वो उनके साथ खेलती थीं
कभी किसी की गाय को यूँ ही
अपने पास बिठा लेती थी
सोचता हूँ अब न जाने किसका राज़ होगा
कालू कुत्ता तो अब बुढा होगा
 
गली वो जो फेरी वालों की
आवाजों से गूंजा करती
गर्मियों की जलती धुप में
बच्चे पकड़ने वालो से डरी सहमी रहती
गली वों जिसमे दरवाज़े
अंदर की तरफ खुलते थे
हर खटखटाहट चाय पिलाने
का न्योता देते थे
गली वो जिसमे सुबह
सब पानी के लिए लड़ते
शाम को साथ बैठ कर 
सब्जियां थे काटते
और रात को वो गली
पहरा देती थी चौकीदार के साथ
 
मेरे पुराने शहर की वो गली
जिसे आज शहर ने भूला दिया
सबने अपना हिस्सा लेकर
उसको अपनी जमीं में मिला दिया
नए शहर की चका चौंध में
घर सबने बड़ा बना लिया
लेकिन किसी ने भी लोगो को
अपनाना नहीं सिखा
हड़प ली उसकी सारी चीज़े  
उसके दिल सा धड़कना नहीं सिखा   
 

Friday, February 08, 2013

सर्द ये मौसम हैं

ठंडी हवा हौले से छूती हैं 
ओंस की बुँदे खिलखिलाती हैं 
खेले कोहरा आँख मिचौली 
सूरज की किरणे भी बादलों में खो जाती हैं 
जो पूछा सुबह की धुप से 
क्यूँ हों तुम अलसायी सी 
बोली कैसे उड़ा दू ओंस की बुँदे 
वो मेरी भी मन भायी सी
देखो ये कैसा आलम है 
सर्द ये मौसम है 
 
उँगलियों के पोरों पे ठिठुरन 
गालों में छायी लालिमा 
हथेलियों को रगड रगड कर 
मुहँ से फेंके सब धुआँ
खुद में सिमट कर 
छोटे होने की होड़ लगी हैं 
खेल ये खेल रहे सब  
क्या बुढा और क्या बच्चा
देखो ये कैसा आलम है 
सर्द ये मौसम है 

Monday, January 28, 2013

कभी कभी -2

यु तो दिन निकल जाता हैं
रोज़ के कामो में
खुश रहता हैं दिल अब
जिंदगी के नए आयामों में
कभी गुज़रे हुए मौसम की
कोई लम्हा याद दिला जाता हैं
यहाँ तो उस मौसम को गुज़रे सालो हुएं
वहाँ कौनसा मौसम होगा
कभी कभी मेरी दिल में ख्याल आता हैं 
 
क्या अब भी पढते हों
मेरे खत अकेले में
या भीगी हवा में उड़ा चुके हों
उनके पुर्जे
क्या संभाल के रखा होगा
मेरी निशानी को
या फिर जला आये होंगे
किसी वीराने में
मैं कुछ भी संग नहीं लायी 
यादों का एक पुलिंदा 
चोरी चुपके न जाने कैसे 
मेरे साथ चला आया  
अपनी यादों के साथ  
तुमने क्या किया होगा
कभी कभी मेरी दिल में ख्याल आता हैं 
 
अब तक तो मुझको भुला दिया होगा
या फिर बेवफा का ख़िताब दे दिया होगा
ये भी अच्छा हैं कहोगे बेवफा तो खुश रहोगे
जान के अब मेरी मज़बूरी भी क्या करोगे
या फिर अभी तक उलझे होंगे कुछ सवालों में
आखिर क्या किया होगा
कभी कभी मेरी दिल में ख्याल आता हैं 
 
 
 
 

Monday, January 21, 2013

कभी कभी


मुझसे तेरा दूर होना
तेरी शरारत हैं 
मुझसे बात ना करना
तेरी शरारत हैं 
मुझे किसी मोड़ पे रोके करना
तेरी शरारत हैं    
मैं जानता हूँ कि ये भुलावा हैं
मगर यूँ ही   
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता हैं 

ख्वाबों की तस्वीर 
दिल से निकल कर 
दीवारों पर लग भी सकती थी 
ख्यालो का फलसफ़ा 
ज़ेहन से निकल कर 
ज़ुबा पे हों भी सकता था 
मैं जानता हूँ कि ये हों न सका
मगर यूँ ही 
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता हैं 

शायद कोई खत हों कहीं
जो मुझ तक पहुंचा नहीं 
या फिर कोई इशारों की बात 
जिसको मैं समझा नहीं 
शायद आज भी तुझे उम्मीदे हैं 
कि मिल जाये हम फिर से कहीं 
मैं जानता हूँ कि ऐसा कुछ भी नहीं 
मगर यूँ ही 
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता हैं 


अब शिकवा नहीं शिकायत नहीं 
किसी पुराने सवाल का जवाब भी नहीं 
तेरी ख्वाहिशों से गुज़र कर 
अब दिल को कोई गम भी नहीं
अंधेरो में सिमटी ये रात 
इसको अब सवेरे का इंतेज़ार भी नहीं 
मैं जानता हूँ कि अब तू गैर हैं  
मगर यूँ ही 
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता हैं