About Me

I write poems - I m going towards me, I write stories - किस्से ओमी भैय्या के, I write randomly - squander with me

Monday, November 29, 2010

कभी मिल गए तो

अगर कभी करनी पड़ जाये बात
तो सोचता हु पहले कौन बोलेगा
क्या होगी कोई नयी सी बात
या वही पुराना किस्सा होगा
 
पुरानी आदतों की शिकायत होगी
या अंजानो की तरह परिचय होगा
क्या पुछेंगे हम दुर रहने का सबब 
या फिर पास आने का इरादा होगा  
 
होगी लबो पे बेवजह मुस्कान 
या आखों में खालीपन होगा
तेरे चेहरे में कोई शिकन होगी
या सुर्ख गालो का रंग लाल होगा
 
शायद जिंदगी होगी तेरी बेहतर
और शिकवा बस हमे होगा
अगर कभी करनी पड़ जाये बात
तो सोचता हु पहले कौन बोलेगा

Monday, October 25, 2010

दीवाने

भीड़ भरे बाजारों से
जो गलिया गुजरती है
आवाजों के झुरमुट में 
पहचानी कोई हंसी नहीं 

हर एक लम्हे में 
एक उम्र गुजरती है
और इंतज़ार में उनके
शाम ढलती ही नहीं

कुछ देर में बादलो की भी 
बस तस्वीर बदलती है 
रंग बदलते आसमा में 
एक रंग है जो आता नहीं 

यु सूरज को डुबाने से
अँधेरा तो हो जाता नहीं
रौशनी चाँद की बहुत है  
चिलमन है कि हटते नहीं

एक दीदार की तमन्ना में
रात युही गुजरती है
फिर भी सकरी गलियों में 
इन दीवानों की कमी नहीं

Wednesday, October 13, 2010

माटी

हल सुनाऊ दिन भर का 
बैठे थे सब साथ में साथी 
खेल रचे थे भाति भाति 
साँझ भई तो माटी के पुतले 
मिल गए फिरसे माटी में

सब लगते थे जैसे सच्चे
प्रेम के थे जो संबंध बांधे 
निभाई दुश्मनी भी कुछ से 
साँझ भई तो घर को लौटे 
रह गए रिश्ते माटी में

कुछ जोड़ा और कुछ घटाया
घर भी बनाये सपनो के
अपने नाम से नारे लगाये
मिटा दिए नाम किसी के 
साँझ भई तो कोई ना रहे
खो गए नाम माटी में

Monday, October 11, 2010

अग्निपथ

शंखनाद का अनुनाद है
चुनौतीयो के संवाद है
ना शस्त्र है ना अस्त्र है
ये ऐसा एक कुरुक्षेत्र है
जहाँ हर प्रहार सख्त है
ये जीवन एक अग्निपथ है

झुलसी हुई पलके है
नयनो को छुती लपटे है
अश्रु की धारा अनवरत है
फिर भी बढते वो स्वपन है
आहुति में गिरता ये रक्त है
ये जीवन एक अग्निपथ है

भाग्य बस एक खेल हो
कर्मो का ऐसा मेल हो
सबसे महान वो मनुष्य है
जिसने पाया अपना उद्देश्य है
आगे बढते रहना ही गत है
ये जीवन एक अग्निपथ है

Saturday, October 09, 2010

गौरिया

टेबल पर बिखरी किताबो से
जब मन उब जाता था
मेरे खिड़की पर कोई
एक संगीत युही सुनाता था

फुदक कर नन्हे कदमो से
वो जैसे दुरिया नापती थी
या नृत्य की कोई नयी विधा
जो मुझको सिखाना चाहती थी

कभी सूखे तिनके
अपनी चोंच में ले आती थी
जैसे अपने बन रहे
घर की बाते मुझे बताती थी
एक गौरिया कभी मेरी खिड़की पर आती थी

अब खिड़की के सामने
एक ईमारत ऊँची है
खोजा उसे बहुत पर
वो बस यादो में बची है

एक मित्र ने बताया
उसके घर अब भी आती है
मुझसे जैसे रूठ गयी पर
कुछ लोगो से अभी भी दोस्ती है

मेरी बस यही विनती है
बनाओ अपने घर चाहे जितने
यु उजाडो ना खोंसले उनके
कही किसी दिन दुनिया ना कहे
एक गौरिया कभी मेरी खिड़की पर आती थी

लफंगा सा एक परिंदा

मैं लफंगा सा एक परिंदा
भरने लगा हु उड़ाने ऐसी
छोटा लगने लगा आसमा
और खोजना पड़ा नया जहा

जी रहा हर ख्वाब ऐसे
कि ज़िन्दगी लगने लगी छोटी
हर लम्हे में ख़ुशी इतनी
कि वक़्त की रफ़्तार भी धीमी

दोस्ती दुश्मनी की किसको पड़ी
अब खुदसे होगई मोहब्बत इतनी
मेरा हवाओ से जुड़ गया रिश्ता
उड़ता रहा मैं लफंगा सा एक परिंदा

Tuesday, July 27, 2010

भूतकाल का बंदी

कौन छुड़ाएगा ये बंधन है ऐसा
खुद की ज़ंजीरो में बंधा है बैठा
कच्चे धागों को समझा है लोहा
भूतकाल का बंदी मैं तो रह गया अकेला

मेरे मन के अंदर रात का साया
बाहर जो देखू है मेरी ही छाया
छुपा के खुदको खुद ही को खोजा
भूतकाल का बंदी मैं तो रह गया अकेला

मेरे कंधो पे मेरी यादो का है बोझा
कल ही के फेरे में चक्कर है सारा
देखा ना पाउ आज अपना ऐसा हु मारा
भूतकाल का बंदी मैं तो रह गया अकेला

Monday, July 26, 2010

इमोशनल अत्याचार

आखों के आँसुं है उसके हथियार
कोई तो बचाओ कबसे करे पुकार
सुबह नाश्ते में पराठा जला हुआ
लंच बॉक्स में वही टुकड़ा बचा हुआ
हमेशा फैले रहे किचन में आंतकवाद
मेरे क्रिकेट का होजाये सत्यानाश
जाने कौन कौन से जनम की बात
बस हर पल मुझको दिलाये याद
सोते हुए भी सारी रामायण सुनाये
रामायण में महाभारत भी छिड़ जाये
प्यार जैसे फोटो एल्बम में दब गया
शिकायतों का पुलिंदा ही बच गया
सात जनम का वादा अब कौन निभाए
होगा अहसान जो यह जनम बच जाये
ओ मेरे भगवन अब तो लेलो अवतार
सहन नहीं होता इमोशनल अत्याचार

Sunday, July 11, 2010

तेरी दीवानी

बाट मैं जोहू तोरी सैय्याँ
कहे सब होगई मैं बावरी
सब ऋतू आये जाये यहाँ
मेरे अखियन में बस पानी

प्रेम के रोग ने ऐसा जकड़ा
वैद्य खुद और खुद ही रोगी
खोयी रहु मैं ध्यान में तेरे
दुनिया समझे मैं रहु जागी

प्रीत का नाता तुझसे जोड़ा
और तु बना गया मेरा बैरी
सखिया मेरी छेड़े नाम से तेरे
और तु भुला मैं तेरी दीवानी

Saturday, July 10, 2010

नीम का पेड़

बीज नहीं सपना था बोया
तब दरख्त तुझसा पाया
तपते सूरज की अग्नि में
मेरे घर में कोमल छाया

देखा मैंने उगते हर एक पत्ता
जैसे बढता है बच्चा अपना
आज मेरे झोपड़े के आँगन में
कितने परिंदों का आशियाना

है तेरी उम्र जाने कितनी
मेरी तो अब होने आयी
मेरे चिता को आग दे कोई
तु ही अपनी लकड़ी जलाना

उपजंगे पौधे तेरे बीजो से
परिंदों तुम उन्हें दूर लेजाना
रखना धरा को हरा भरा
तु ही मेरा वंश चलाना

Saturday, July 03, 2010

last words

yes I know you have gone far away
and never gonna think about coming back
yes I know you don't want to talk
and never gonna look into my eyes.


it was never a love in my heart for you
if you can believe its more than that
and u must know even if you forget me
I will be waiting with your favorite roses


after this moment you will have a new life
and I will be stuck here for the eternity
I wish I would not have been meet you
or now at least once I see you again

Friday, July 02, 2010

परवाना

जादु तुम्हे कोइ आता है
या खुद्से हुआ मैं दीवाना
आखों मे तेरी कोइ नशा है
या है मेरा कोइ भुलावा

क्या है अदा तेरी ऐसी
ऐसा भी ये इश्क है क्या
मरते रहे हम हरदम
और तुमको खबर भी ना

आता है तुमको छिपाना
या फिर कोई अरमा ही नहीं
करते रहे हम इंतज़ार
और वो तेरा रास्ता ही नहीं

अब जो भी किस्मत मेरी
तुम ही हो ख्वाहिश मेरी
होगा कामयाब ये फसाना
या जल जाएगा ये परवाना

लोरी

तकिये की नीचे रखी नींद सुरीली
सोयेगा जो खायेगा मीठी जलेबी
पापा को ना आये बिटिया कोई लोरी
झूटे मूठे बहानो की यह है कहानी

तेरी नींद होगी सपनो से सजी
होगा तेरा राजा और तेरी रानी
हाथी शेर चीते करेंगे सलामी
परियो से होगी तेरी दोस्ती

झूले का ये देश कल होगा छोटा
ऊँची होगी उड़ाने कौन रोकेगा
दुनिया जीतने से पहले करले आराम
सो जा अब लेके करवट कोई आसान

आरज़ू

है मौसिकी तेरी तो तेरा ही नगमा दे,
तेरे संग गाउ मैं खुदा ऐसी बंदिशे दे

मेरा जिस्म तो एक बुत है
मेरी रूह को तू सुकुन दे
है अगर सांसें तेरी तो इनको सबब दे
तुझसे मिले सकु ऐसी मुझे राहे दे

क्या करू मैं तेरी इबादत
या बन जाऊ खुद ही खुदा
है आशिकी मेरी तो इसे एक महबूब दे
देखू खुदमे तुझको ऐसी मोह्हब्बत दे

Tuesday, April 27, 2010

प्रेम कविता

कैसे कह दू क्या है होता
कैसे लिख दू प्रेम कविता

माधुर्य का पर्याय तुम्ही हो
संध्या की हो अद्भुत बेला
कुमुदनी कुसुम कहू या
कह दू चन्द्रमा की शीतलता

नैनों में लिखी एक पहेली
भावनावो की हो रंगोली
अनंत की हो जैसे रौशनी
हो मेरे ह्रदय की सहेली

तू अलबेली जो सुनना चाहे
शब्द नहीं जो वो कह पाए
कैसे कह दू क्या है होता
कैसे लिख दू प्रेम कविता

Monday, April 05, 2010

रिश्ते

अनलिखे ख़त के है कभी कागज़ कोरे
कभी किताब में दबे से भूले ये बिसरे
रिश्ते आखिर है ये कैसे सिलसिले
हम न समझे फिर भी निभाते रहे

एक थी मंजिले और एक थे रस्ते
आज है वो हमसफ़र क्यों अनजाने
सांसो को भी छु लेने कि कभी नजदिकिया
और कभी नाम भी न ले पाने कि दुरिया
कभी सुरमई शाम की है ठंडी हवा
है कभी तपते सूरज की गर्मिया
रिश्ते आखिर है कैसी ऋतुये
बिना वक़्त के यह बदल जाये

आँचल के पीछे से है झाकते
छोटे होने की जिद में है लड़ते
कभी यु ही मुह फुलाये बैठे रहे
और कभी आके खुदसे गुदगुदाए
जिनके बिना कभी जीना था मुश्किल
कही दूर ही छुट जाये हो जाये ओझिल
रिश्ते आखिर है ये कैसे है बूँदें
बारिश हो फिर भी रह जाये सूखे