About Me

I write poems - I m going towards me, I write stories - किस्से ओमी भैय्या के, I write randomly - squander with me

Tuesday, August 21, 2012

प्रोटोकॉल

मीटिंग में फरमान आया
साहब का फ़ोन घनघनाया
श्रीमान जी बोले व्यस्त हूँ
मीटिंग में बीच में पस्त हूँ
थोड़े देर में कॉल बैक करता हूँ
पहले कार्यालय के भूतो से निपटता हूँ
निविदा नीलामी के फाइलो में 
साहब का दिन गुजर गया 
कॉल बैक का आश्वासन 
मीटिंग की तरह अधुरा रह गया 
जब पहुंचे घर तो
घर में सन्नटा पाया
सास बहु की सीरियल में
साजिशो का अंबार पाया 
कुछ न पूछा कुछ न बताया 
श्रीमती जी ने किचन में कदम बढाया 
श्रीमान जी को हुआ अंदेशा 
खाने पर है आज जलने का साया 
कुछ तो किया हैं
लेकिन कुछ याद न आया
जानने के लिए बीवी की
तारीफों का कसीदा सुनाया
दो तीन रोटियों के जलने के बाद
मेहनत का फल सामने आया
जब गड़े पुराने किस्सों का
बीवी ने ताना सुनाया
फिर आयी वो मुद्दे पे
जब इस बार का गुनाह बताया
किया था तुमको फ़ोन
तुमने सौतन मीटिंग के लिए
मुझको ठुकराया
आगे से ऐसा न करना
पहले मुझसे बात ही करना
नहीं तो ऐसे ही शाम को पछताओगे  
न टीवी देख पायगे
न खाना खा पाओगे
शादी का था प्रोटोकॉल समझाया
जब श्रीमती जी ने था फोन घुमाया

इश्क

फूल, फूल से लगते हैं
चाँद, चाँद सा लगता हैं
चेहरा कोई नज़र आता नहीं
भीड़, भीड़ सी लगती हैं
आवाज़े, शोर सी लगती हैं
अनजान कोई अपना लगता नहीं
क्यूँ हमको इश्क होता नहीं
 
किसी शाम को कभी कभी 
इश्क का बुखार सा लगता हैं
उलटी सीधी शायरी वाला  
खांसी का दौरा भी पड़ता हैं
बिना दवा के ठीक हो जाये 
मर्ज़ ये भी रहता नहीं  
क्यूँ हमको इश्क होता नहीं