मैं लफंगा सा एक परिंदा
भरने लगा हु उड़ाने ऐसी
छोटा लगने लगा आसमा
और खोजना पड़ा नया जहा
जी रहा हर ख्वाब ऐसे
कि ज़िन्दगी लगने लगी छोटी
हर लम्हे में ख़ुशी इतनी
कि वक़्त की रफ़्तार भी धीमी
दोस्ती दुश्मनी की किसको पड़ी
अब खुदसे होगई मोहब्बत इतनी
मेरा हवाओ से जुड़ गया रिश्ता
उड़ता रहा मैं लफंगा सा एक परिंदा
1 comment:
उड़ता रहा मैं लफंगा सा एक परिंदा
.....
बचा कर रखना अपने परों को
निगाह रखे हुए है आखेटक दरिंदा
सुन्दर रचना
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