आखों के आँसुं है उसके हथियार
कोई तो बचाओ कबसे करे पुकार
सुबह नाश्ते में पराठा जला हुआ
लंच बॉक्स में वही टुकड़ा बचा हुआ
हमेशा फैले रहे किचन में आंतकवाद
मेरे क्रिकेट का होजाये सत्यानाश
जाने कौन कौन से जनम की बात
बस हर पल मुझको दिलाये याद
सोते हुए भी सारी रामायण सुनाये
रामायण में महाभारत भी छिड़ जाये
प्यार जैसे फोटो एल्बम में दब गया
शिकायतों का पुलिंदा ही बच गया
सात जनम का वादा अब कौन निभाए
होगा अहसान जो यह जनम बच जाये
ओ मेरे भगवन अब तो लेलो अवतार
सहन नहीं होता इमोशनल अत्याचार
3 comments:
बहुत खूब.....बहुत खूब
I mailed this poem to my husband.....he couldnt help smiling:)
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