भीड़ भरे बाजारों से
जो गलिया गुजरती है
जो गलिया गुजरती है
आवाजों के झुरमुट में
पहचानी कोई हंसी नहीं
हर एक लम्हे में
एक उम्र गुजरती है
और इंतज़ार में उनके
शाम ढलती ही नहीं
कुछ देर में बादलो की भी
बस तस्वीर बदलती है
रंग बदलते आसमा में
एक रंग है जो आता नहीं
यु सूरज को डुबाने से
अँधेरा तो हो जाता नहीं
रौशनी चाँद की बहुत है
चिलमन है कि हटते नहीं
एक दीदार की तमन्ना में
रात युही गुजरती है
फिर भी सकरी गलियों में
इन दीवानों की कमी नहीं
2 comments:
Good one..
romantic ;)
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