एक मृगनयनीकवि महाराज से बोली
ये आप क्या करते हो
इधर उधर की बाते कहते हो
कभी बाते गंभीर होती है
अक्सर बिना सर पैर की होती है
क्यों नहीं कुछ अच्छा लिखते
कुछ प्रेम व्रेम की बाते करते
जो कभी किया नहीं प्यार
तुमे लगे नहीं लिख पाओगे श्रृगांर
तो एक कम करो आसान
चलाओ कोई हास्य का बाण
कवि ने सोचा
लिखे कोई प्रेम कविता
करे युवती के रूप का बखान
फिर आया उसके दबंग भाइयो का ध्यान
वैसे भी नारी वर्णन में कितने कवि बर्बाद हुए
परेशान थे अब कैसे अपनी नैया पार लगे
बालिके को इम्प्रेस करने कि जो थी ठानी
उन्होंने हास्य की पुरी हिस्ट्री छान मारी
किसी असहाय का मजाक उड़ाना
होगा हास्य निम्न कोटि का
लेकिन औकात भी कहा थी
कि लिखे कुछ उच्च कोटि का
राजनीति से प्रेरित व्यंग्य के दिन लद गए
क्युंकि आम लोग उनसे ज्यादा कमीने हो गये
आजकल हँसी के माने बदल गए
टीवी के कुछ शो हँसाने को रह गए
लिख दी बाते दो चार
कुछ आचार कुछ विचार
खुद समझ नहीं पाये क्या लिखा है
हास्य के नाम पर क्या गंध छोड़ा है
विनाशकाले विपरीत बुद्धि से बच गए
और सही समय पर अपने इरादों से हट गए
किसी को बताया नहीं
कि कभी कुछ ऐसा भी था लिखा
मृगनयनी से बोले
लिखेंगे आपके लिए ये वादा रहा