खवाब मेरे जाने क्यों धुआँ बनके उड़ गए
जिन आंखों से सजाया था उन्ही से देखते रहे
तिनका तिनका था जोडा आशियाने क लिए
आंधी ने यह न सोचा एक पल क लिए
बिखर गए सब जैसे कोई रिश्ता न हो
रह गई सुनी डाल मुझपे तरस खाने को
दर्द से दिल चीख भी नही पाया
और मेरे कातिल मुझपे हँसते रहे
1 comment:
Wah janaab .. kya dard hai kavita mein !!!
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