खवाब मेरे जाने क्यों धुआँ बनके उड़ गए
जिन आंखों से सजाया था उन्ही से देखते रहे
तिनका तिनका था जोडा आशियाने क लिए
आंधी ने यह न सोचा एक पल क लिए
बिखर गए सब जैसे कोई रिश्ता न हो
रह गई सुनी डाल मुझपे तरस खाने को
दर्द से दिल चीख भी नही पाया
और मेरे कातिल मुझपे हँसते रहे
About Me
- ओमी
- I write poems - I m going towards me, I write stories - किस्से ओमी भैय्या के, I write randomly - squander with me
Sunday, November 18, 2007
Wednesday, October 31, 2007
naqab
पहने रहा यह नकाब कुछ ऐसे
अब पास मेरे सिवा इसके कुछ नही
था शयद मेरा भी कोई निशान कही
मुझे अब अपनी ही शकल याद नही
नज़र जैसे सबकी मेरे नकाब पर है
अपने नाक़बो से उन्हें नफरत ऐसी है
किस कलाकार ने बनाया है इसे पूछते है
कहता ह ज़माने ने दिया है तो हस्ते है
जब आया था यहा तो मांस का टुकडा था
आज ज़माने ने इन्सान बना दिया है मुझे
सिखाई मुझे सब लोगो ने उनकी ही जुबान
आज कहते है मेरे अल्फास नए से क्यों है
साजिश है मेरे नकाब को छीनने की यह
उनके नकाब अब शिशो से साफ जो है
कहता है ज़माना एक बात बता दे
तू चीज़ क्या है हमे समझा दे
कहता था पहले तू क्यों हमसा नही है
बना इसके तरह तो अब यह वैसा नही है
अगर हर शकल यहा नकाबपोश है
तो मेरे नकाब से ही यह सवाल क्यों है
अब पास मेरे सिवा इसके कुछ नही
था शयद मेरा भी कोई निशान कही
मुझे अब अपनी ही शकल याद नही
नज़र जैसे सबकी मेरे नकाब पर है
अपने नाक़बो से उन्हें नफरत ऐसी है
किस कलाकार ने बनाया है इसे पूछते है
कहता ह ज़माने ने दिया है तो हस्ते है
जब आया था यहा तो मांस का टुकडा था
आज ज़माने ने इन्सान बना दिया है मुझे
सिखाई मुझे सब लोगो ने उनकी ही जुबान
आज कहते है मेरे अल्फास नए से क्यों है
साजिश है मेरे नकाब को छीनने की यह
उनके नकाब अब शिशो से साफ जो है
कहता है ज़माना एक बात बता दे
तू चीज़ क्या है हमे समझा दे
कहता था पहले तू क्यों हमसा नही है
बना इसके तरह तो अब यह वैसा नही है
अगर हर शकल यहा नकाबपोश है
तो मेरे नकाब से ही यह सवाल क्यों है
Sunday, October 21, 2007
duriya
मालुम न था यह बात इतनी बिगड़ जायेगी
दो पल कि यह दुरी इतनी बड़ी हो जायेगी
रोका नही था यह सोच कर
ख़ुद ही लौट आयोगे
मेरे नही तो कम से कम
अपने दिल की ही मान लोगे
मालुम न था दिल की बात बेअसर हो जायेगी
दो पल कि यह दुरी इतनी बड़ी हो जायेगी
हम जो देना चाहे आवाज़
तो तुम हो जाने कहा
परछाइंया भी न आए नज़र
अँधेरा यह छाया कैसा
मालुम न था प्यार कि रौशनी मद्धम हो जायेगी
दो पल कि यह दुरी इतनी बड़ी हो जायेगी
दो पल कि यह दुरी इतनी बड़ी हो जायेगी
रोका नही था यह सोच कर
ख़ुद ही लौट आयोगे
मेरे नही तो कम से कम
अपने दिल की ही मान लोगे
मालुम न था दिल की बात बेअसर हो जायेगी
दो पल कि यह दुरी इतनी बड़ी हो जायेगी
हम जो देना चाहे आवाज़
तो तुम हो जाने कहा
परछाइंया भी न आए नज़र
अँधेरा यह छाया कैसा
मालुम न था प्यार कि रौशनी मद्धम हो जायेगी
दो पल कि यह दुरी इतनी बड़ी हो जायेगी
Saturday, October 20, 2007
sharabi
अगर शराब है खत्म तेरे मैखाने मे
तो नज़रे मिला के पानी ही देदे जाम मे
किसको चड़ता है नशा यहा पीने से
हमको तो नशा है तेरे इश्क मे जीने से
है बहूत बड़ा यह शहर
इसमे मैखाने और भी है
नए नही इस शहर मे जो
बाकियों से हम अनजाने है
बहाना है पीना जो आते है तेरे मैखाने मे
तरसे हुए है सुकून पाते है तेरे दीदार मे
जानते है तुझे हमसे कोई वास्ता नही
मैं तेरे लिए एक शराबी ही सही
खाली यह जाम हँसता है मुझपे
इसकी चुभती हसी को एक हद देदे
ज़िंदगी नही तो मौत का ही जाम दे
पानी भी नही तेरे पास तो साकी जहर देदे
बहूत है गलिया शहर मे लड़खडांने क लिए
आज लड़खडाने से पहले सम्हाल ले तेरे मैखाने मे
तो नज़रे मिला के पानी ही देदे जाम मे
किसको चड़ता है नशा यहा पीने से
हमको तो नशा है तेरे इश्क मे जीने से
है बहूत बड़ा यह शहर
इसमे मैखाने और भी है
नए नही इस शहर मे जो
बाकियों से हम अनजाने है
बहाना है पीना जो आते है तेरे मैखाने मे
तरसे हुए है सुकून पाते है तेरे दीदार मे
जानते है तुझे हमसे कोई वास्ता नही
मैं तेरे लिए एक शराबी ही सही
खाली यह जाम हँसता है मुझपे
इसकी चुभती हसी को एक हद देदे
ज़िंदगी नही तो मौत का ही जाम दे
पानी भी नही तेरे पास तो साकी जहर देदे
बहूत है गलिया शहर मे लड़खडांने क लिए
आज लड़खडाने से पहले सम्हाल ले तेरे मैखाने मे
Saturday, June 30, 2007
Zinda
रौशनी और अंधेरो का फर्क महसूस नही होता
सन्नाटे मे अकेला मेरा दिल ही है चिखता
सांसें चलती है जैसे कोई क़र्ज़ चुकाने को
जलता है मेरा बदन मुझको यह बताने को
की मैं जिंदा हू
एक वही लम्हा जी रहा ह मैं बरसों से
खुलती है मेरी आँखें इन्ही दीवारों मे
मरने क लिए मैं क्या नही करता
नाकामयाब कोशिश यह कहती है
की मैं जिंदा हू
कोई तो जनता होगा आख़िर यह कैसी कैद है
मेरे इंतज़ार की क्यों नही कोई हद है
खुदा तुझपे ही अब रह गया भरोसा
तू ही बता यह तेरी राजा है या कोई गलती
की मैं जिंदा हू
सन्नाटे मे अकेला मेरा दिल ही है चिखता
सांसें चलती है जैसे कोई क़र्ज़ चुकाने को
जलता है मेरा बदन मुझको यह बताने को
की मैं जिंदा हू
एक वही लम्हा जी रहा ह मैं बरसों से
खुलती है मेरी आँखें इन्ही दीवारों मे
मरने क लिए मैं क्या नही करता
नाकामयाब कोशिश यह कहती है
की मैं जिंदा हू
कोई तो जनता होगा आख़िर यह कैसी कैद है
मेरे इंतज़ार की क्यों नही कोई हद है
खुदा तुझपे ही अब रह गया भरोसा
तू ही बता यह तेरी राजा है या कोई गलती
की मैं जिंदा हू
Wednesday, May 23, 2007
meri zindagi
मेरी ज़िंदगी मुझे दूर ले आई
मेरा न कोई माजी रहा
हर कोशिश होती गई कामयाब
मेरा न कोई रास्ता रहा
मंजिले मिलती रही हरदम मुझे
खवाब होते रहे उम्मीदों से बड़े
ज़िंदगी मुड्गायी जिस तरफ़ देखा
मेरा न कोई मंजर रहा
यार सब कही खो से गए
प्यार किताब मे दब से गए
मशरुफ़ रहा कागजों मे इतना
मेरा न कोई अहसास रहा
दिल चाहे रोना तो कोना कहा है
जिसपे रखे सिर वह कन्धा कहा है
मिलता रहा इतनो चेहरों से रोज़
मुझे कोई चेहरा याद न रहा
मेरी ज़िंदगी मुझे दूर ले आई
मेरा न कोई माजी रहा
हर कोशिश होती गई कामयाब
मेरा न कोई रास्ता रहा
मेरा न कोई माजी रहा
हर कोशिश होती गई कामयाब
मेरा न कोई रास्ता रहा
मंजिले मिलती रही हरदम मुझे
खवाब होते रहे उम्मीदों से बड़े
ज़िंदगी मुड्गायी जिस तरफ़ देखा
मेरा न कोई मंजर रहा
यार सब कही खो से गए
प्यार किताब मे दब से गए
मशरुफ़ रहा कागजों मे इतना
मेरा न कोई अहसास रहा
दिल चाहे रोना तो कोना कहा है
जिसपे रखे सिर वह कन्धा कहा है
मिलता रहा इतनो चेहरों से रोज़
मुझे कोई चेहरा याद न रहा
मेरी ज़िंदगी मुझे दूर ले आई
मेरा न कोई माजी रहा
हर कोशिश होती गई कामयाब
मेरा न कोई रास्ता रहा
Sunday, March 25, 2007
moksha
मैं ही ब्रम्हा विष्णु हू मैं हू शिवा
मेरे ही कंठो मे समाया हलाहल सारा
विस्मित करती सबको जो यह है धरा
गगन का बैठाया जाल उसपे सारा
ललचाने को तुझे मैं सितारे चमकता
चाँद और सूरज को देता मैं ही उजाला
रंग सरे मैंने रंगे फूलों को महकाया
वायु को बहने के लिए दिशा ज्ञान समझाया
नदियों को मोडा है ऐसे की जंगलो को सींचा
गहरी खाई ऊँचे पहाडो का मैं ही रचियिता
मनुष्य का मन है मेरा ही आविष्कार
मोहमाया मे देखता है तू सारा संसार
खोल नयन देख कौन खड़ा है उसके पार
तू है मेरा ही अंश मैं तेरा साकार
मैं ही ब्रम्हा विष्णु ह मैं ह शिवा
सारा जग मुझे है और मैं तुझमे समाया
मेरे ही कंठो मे समाया हलाहल सारा
विस्मित करती सबको जो यह है धरा
गगन का बैठाया जाल उसपे सारा
ललचाने को तुझे मैं सितारे चमकता
चाँद और सूरज को देता मैं ही उजाला
रंग सरे मैंने रंगे फूलों को महकाया
वायु को बहने के लिए दिशा ज्ञान समझाया
नदियों को मोडा है ऐसे की जंगलो को सींचा
गहरी खाई ऊँचे पहाडो का मैं ही रचियिता
मनुष्य का मन है मेरा ही आविष्कार
मोहमाया मे देखता है तू सारा संसार
खोल नयन देख कौन खड़ा है उसके पार
तू है मेरा ही अंश मैं तेरा साकार
मैं ही ब्रम्हा विष्णु ह मैं ह शिवा
सारा जग मुझे है और मैं तुझमे समाया
ranbhoomi
देखो यह रणभूमि है
हर यहा मृत्यु शैया
जीत रात भर का आशीर्वाद है
सुबह लाती ललकार शत्रु की
साँझ सूचना घायलों की
मरने वालो कि पहचान कहा है
साबुत मिले वह शव कहा है
यहा लहू कि कहा कमी है
देखो यह रणभूमि है
गर्जन करते आगे बड़ते है
अपनी वीरता का दंभ भरते है
देखे महावीर जो कल लड़ते थे
आज खुले नयनो से सोये है
महत्वाकांक्षा के बलि हुए वह
बचे हुए फिर भी चलते है
जितने की ही सबको पड़ी है
देखो यह रणभूमि है
कुछ के पास अनुभव बहुत है
कुछ सीधे आँगन से आए है
मानव के सारे समंध भूल के
अपनी आंखों मे लहू लाये है
टपके पसीना शरीर से बाद मे
पहले इनका लहू बहता है
तलवार यहा अब किसकी सुखी है
देखो यह रणभूमि है
हर यहा मृत्यु शैया
जीत रात भर का आशीर्वाद है
सुबह लाती ललकार शत्रु की
साँझ सूचना घायलों की
मरने वालो कि पहचान कहा है
साबुत मिले वह शव कहा है
यहा लहू कि कहा कमी है
देखो यह रणभूमि है
गर्जन करते आगे बड़ते है
अपनी वीरता का दंभ भरते है
देखे महावीर जो कल लड़ते थे
आज खुले नयनो से सोये है
महत्वाकांक्षा के बलि हुए वह
बचे हुए फिर भी चलते है
जितने की ही सबको पड़ी है
देखो यह रणभूमि है
कुछ के पास अनुभव बहुत है
कुछ सीधे आँगन से आए है
मानव के सारे समंध भूल के
अपनी आंखों मे लहू लाये है
टपके पसीना शरीर से बाद मे
पहले इनका लहू बहता है
तलवार यहा अब किसकी सुखी है
देखो यह रणभूमि है
Tuesday, February 13, 2007
when i was old
ढलती रही मेरी उमर धुप की तरह
आई नज़र ज़िंदगी एक दिन शाम की तरह
जब देखा पीछे तो घर नही था
कोई रास्ता कोई नुक्कड़ नही था
बस हाथ उठाया जो किसी के तरफ़
लौट आया ख़ुद ही कटी पतंग की तरह
मेरे बचपन मेरे जवानी की
जैसे कोई अधूरी कहानी सी
कितने बाते याद आने लगी
सब यू ही आखें गीली करनी लगी
छुने की कोशिश जो की एक अहसास को
उड़ गया वह किसी खुशबू की तरह
आज मेरी तरह यहा और भी है
सबके कल थे अलग आज एकसे है
हर किसी ने कुछ पाया था कभी
आज सब है खाली मुठी की तरह
ढलती रही मेरी उमर धुप की तरह
आई नज़र ज़िंदगी एक दिन शाम की तरह
आई नज़र ज़िंदगी एक दिन शाम की तरह
जब देखा पीछे तो घर नही था
कोई रास्ता कोई नुक्कड़ नही था
बस हाथ उठाया जो किसी के तरफ़
लौट आया ख़ुद ही कटी पतंग की तरह
मेरे बचपन मेरे जवानी की
जैसे कोई अधूरी कहानी सी
कितने बाते याद आने लगी
सब यू ही आखें गीली करनी लगी
छुने की कोशिश जो की एक अहसास को
उड़ गया वह किसी खुशबू की तरह
आज मेरी तरह यहा और भी है
सबके कल थे अलग आज एकसे है
हर किसी ने कुछ पाया था कभी
आज सब है खाली मुठी की तरह
ढलती रही मेरी उमर धुप की तरह
आई नज़र ज़िंदगी एक दिन शाम की तरह
Friday, February 02, 2007
you n me
you are the son of the king
and you may think
this world is so great
everyone is here friend
they offer u sweets
when you comes on streets
I m the son of a farmer
for me this world is harder
when I wander in roads
they call me ghost
when I look into there shops
they show me way to rocks
and you may think
this world is so great
everyone is here friend
they offer u sweets
when you comes on streets
I m the son of a farmer
for me this world is harder
when I wander in roads
they call me ghost
when I look into there shops
they show me way to rocks
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