मन के मंथन से जो उपजा
बंजर कर दे सारी वसुधा
ऐसा पश्चाताप का हलालाल
अंजलि में लिए फिरता हूँ
कर ले जो जनहित में विषपान
ऐसे शिव को खोजता फिरता हूँ
विचारों के धरातल को तोड़ दे
मेरी सोच की सीमाओ को लाँघ दे
कर दे मन के टुकड़े टुकड़े
हर एक टुकड़ा नवजीवन हों
कर दे विनाश का तांडव
ऐसे शिव को खोजता फिरता हूँ
हे ब्रह्म तुम सृजन को तैयार रहों
मैं आता हूँ अपने मन को लेके
मृत्यु का आशीर्वाद दे कर
जीवन की ओर जो मन को भेजे
पूर्ण करें जो जीवन चक्र को
ऐसे शिव को खोजता फिरता हूँ
2 comments:
Very well written OP ji....
I wish the poem was longer :)
Thanks Sweta ji
Will try to append later ..have some idea but not so sure :)
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