ठंडी हवा हौले से छूती हैं
ओंस की बुँदे खिलखिलाती हैं
खेले कोहरा आँख मिचौली
सूरज की किरणे भी बादलों में खो जाती हैं
जो पूछा सुबह की धुप से
क्यूँ हों तुम अलसायी सी
बोली कैसे उड़ा दू ओंस की बुँदे
वो मेरी भी मन भायी सी
देखो ये कैसा आलम है
सर्द ये मौसम है
उँगलियों के पोरों पे ठिठुरन
गालों में छायी लालिमा
हथेलियों को रगड रगड कर
मुहँ से फेंके सब धुआँ
खुद में सिमट कर
छोटे होने की होड़ लगी हैं
खेल ये खेल रहे सब
क्या बुढा और क्या बच्चा
देखो ये कैसा आलम है
सर्द ये मौसम है
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