गली वो जो मेरे बचपन से शुरू होती थीं
संग मेरे दोस्तों के दौड़ा करती थीं
सूखते आवलों और पापड़ों से
खुद को संग हमारे बचती बचाती
कभी चोर पुलिस तो लुक्का छिप्पी
शोर मचाने पर बूढी दादी की डाट खाती
गली वो सोचता हूँ
अब न जाने कैसी होगी
क्या अब भी बारिश में
वो किसी छज्जे में छुपती होगी
गली वों जिसने जगह दी थी
आवारों कुत्तों को
हमने भी नाम दिए थे उन
मासूम पिल्लो को
सबके मना करने पर भी
वो उनके साथ खेलती थीं
कभी किसी की गाय को यूँ ही
अपने पास बिठा लेती थी
सोचता हूँ अब न जाने किसका राज़ होगा
कालू कुत्ता तो अब बुढा होगा
गली वो जो फेरी वालों की
आवाजों से गूंजा करती
गर्मियों की जलती धुप में
बच्चे पकड़ने वालो से डरी सहमी रहती
गली वों जिसमे दरवाज़े
अंदर की तरफ खुलते थे
हर खटखटाहट चाय पिलाने
का न्योता देते थे
गली वो जिसमे सुबह
सब पानी के लिए लड़ते
शाम को साथ बैठ कर
सब्जियां थे काटते
और रात को वो गली
पहरा देती थी चौकीदार के साथ
मेरे पुराने शहर की वो गली
जिसे आज शहर ने भूला दिया
सबने अपना हिस्सा लेकर
उसको अपनी जमीं में मिला दिया
नए शहर की चका चौंध में
घर सबने बड़ा बना लिया
लेकिन किसी ने भी लोगो को
अपनाना नहीं सिखा
हड़प ली उसकी सारी चीज़े
उसके दिल सा धड़कना नहीं सिखा