फटे कपड़ो के साबुत जेबों में
छोटे मोटे लोहे के टुकडो में
वो ज़िन्दगी तलाशता है
वो कचरा बीनता है
कुछ आकार बना लेता है
जंग लगे तारो से
बेकार चीजों के ठेर में भी
वो खिलौना तलाशता है
वो कचरा बीनता है
लोगो की गालियों को कर
अनसुना अपने में खोया रहता है
दिखने में कम उमर का शायद
वो अपनी उमर तलाशता है
वो कचरा बीनता है
फेके गए टूटे हुए सामानों में
कुछ साबुत टुकड़े खोज ही लेता है
लोगो के इस्तेमाल हुई खुशियों में
अपनी भी ख़ुशी तलाशता है
वो कचरा बीनता है
लोगो के इस्तेमाल हुई खुशियों में
अपनी भी ख़ुशी तलाशता है
वो कचरा बीनता है
2 comments:
I gauss it is the "Best" till among your all poems..
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