हल सुनाऊ दिन भर का
बैठे थे सब साथ में साथी
खेल रचे थे भाति भाति
साँझ भई तो माटी के पुतले
मिल गए फिरसे माटी में
सब लगते थे जैसे सच्चे
प्रेम के थे जो संबंध बांधे
निभाई दुश्मनी भी कुछ से
साँझ भई तो घर को लौटे
रह गए रिश्ते माटी में
कुछ जोड़ा और कुछ घटाया
घर भी बनाये सपनो के
अपने नाम से नारे लगाये
मिटा दिए नाम किसी के
साँझ भई तो कोई ना रहे
खो गए नाम माटी में
1 comment:
very good.... nice message!
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