जगने पर भी चादर ओड़ कर
सोचता हूँ माँ आएगी जगाने
भूल जाता हूँ हर सुबह
कि कम्बखत बड़ा हो गया हूँ मैं
रात को करवटे बदलता रहता हूँ
सोचता हूँ माँ आएगी सुलाने
भूल जाता हूँ हर रात
कि कमबख्त बड़ा हो गया हूँ मैं
अनसुलझे सवालो को बटोर कर
सोचता हूँ पापा से पूछूँगा
भूल जाता हूँ हर बार
कि कमबख्त बड़ा हो गया हूँ मैं
दुनिया से लड़ कर आ जाता हूँ
सोचता हूँ भैय्या निपट लेगा सबसे
भूल जाता हूँ हर बार
कि कमबख्त बड़ा हो गया हूँ मैं
छोटे होने पर थी नाराज़गी
सोचता था जल्दी बड़ा हो जाऊ
लेकिन इतनी भी क्या थी जल्दी
कि कमबख्त बड़ा हो गया हूँ मैं
1 comment:
bachpan me hum bada hona chahte hai or bade hokar bachpan pyaara lagta hai..
jiwan ki duvidha yahi hai ki jo paas hai wo kabhi khas nahi hota or jo khas hai wo paas nahi hote :D
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