About Me

I write poems - I m going towards me, I write stories - किस्से ओमी भैय्या के, I write randomly - squander with me

Saturday, July 10, 2010

नीम का पेड़

बीज नहीं सपना था बोया
तब दरख्त तुझसा पाया
तपते सूरज की अग्नि में
मेरे घर में कोमल छाया

देखा मैंने उगते हर एक पत्ता
जैसे बढता है बच्चा अपना
आज मेरे झोपड़े के आँगन में
कितने परिंदों का आशियाना

है तेरी उम्र जाने कितनी
मेरी तो अब होने आयी
मेरे चिता को आग दे कोई
तु ही अपनी लकड़ी जलाना

उपजंगे पौधे तेरे बीजो से
परिंदों तुम उन्हें दूर लेजाना
रखना धरा को हरा भरा
तु ही मेरा वंश चलाना

7 comments:

Jandunia said...

शानदार पोस्ट

समय चक्र said...

सुन्दर अभिव्यक्ति...बधाई ...

Unknown said...

ek november bhai... Maza aa gaya.
Wapis main bachpan me paunch gaya.

main_sachchu_nadan said...

sahi hai bhai .. kafi gahrai hai is kavita mein. Keep it up buddy !!!

Udan Tashtari said...

बेहतरीन!!

Sagar said...

Good one, good mix of emotion and flow.

you can add presence of u r frnd at every step of u r life and at end also. It can make it more touchy.

Sweta said...

beautiful :)