देखा इस गगन को कई बार रंग बदलते हुए
हर बार लगता है यह है बस छूने के लिए
बैठे है किसी दरख्त मे नज़र रखे दूर सितारों पे
पंख फैलाये एक दिन उड़ने को नया जहा खोजने के लिए
मगर लगता है डर बड़े शिकारियों से
जो बैठे है मुझे कैद करने के लिए
अब जो भी हो अपना जिस्म दाव पे लगा के
लिए हुए उम्मीद उड़ चले हम जानने के लिए
की खुदा ने क्या चुना है मेरे लिए
उसकी ज़मी सारी उमर या अपना आसमा उड़ने के लिए
1 comment:
Fundoo yaar...wakai mein kavita mein sanjidagi hai bhai. keep it up!!!
Post a Comment