आये हैं हमारे आंगन
रुई से चमकते बादल
जैसे धो के अभी सुखाया हैं
गगन भी जैसे अभी ही नहाया हैं
अच्छी खुशबू आती मिट्टी से
पानी की बुँदे लटकी पत्ती से
देखो जैसे सूरज टुट गया बूंदों में
और ये बुँदे ही फैलाती रौशनी जग में
छोटी छोटी नदियाँ बहती
आंगन में चांदी सी चमकती
बारिश के बाद बतलाओ
धुप होती हैं क्यूँ इतनी उजली
अम्मा बाहर तो निकलो
देखो आयी धुप बारिश में धुली
4 comments:
बारिश में धुली धूप... सुनने में जितना अच्छा लगता है, महसूस करने में उससे भी बाड़िया लगता है! Loved the way you have woven the whole scene together, I can almost picture the image
dhup kitni suhavni lagti hain.bahut hi suhavni...jab apki poem padi to muje hi esa laga..
धन्यवाद रेशमा और भावना :)
Post a Comment