शब्द मेरे कागज़ के फूल
खुशबू तुम ले आती हो
छंद मेरे ठहरा हुआ पानी
लहरे तुम ले आती हो
कवितायेँ मेरी अधुरी सी
सार्थक तुम बना देती हो
लिखने की वजह मिल जाती है
जब भी कवितायेँ मेरी पढ़ती हो
किसी संजीदा बात पे
आखें नम कर लेती हो
भावुक होकर अब ना पढूंगी
जब भी ऐसा कहती हो
लिख लेता हूँ कुछ ऐसा
लगता है जो हँसने जैसा
व्यंग्य पढ़ कर मेरे
जो मुस्कुरा देती हो
लिखने की वजह मिल जाती है
जब भी कवितायेँ मेरी पढ़ती हो
लिखता रहूँगा मैं तो ऐसे ही
कुछ तुम भी पसंद कर लेना
जो बात समझ में ना आये
बकवास समझ कर भुला देना
बस याद रखना इतना ही
मेरा लिखा तो बस जीवन की बाते
बातो में जीवन तुम लाती हो
लिखने की वजह मिल जाती है
जब भी कवितायेँ मेरी पढ़ती हो
1 comment:
बहुत खूब लिखते है आप, ओमी साहब !!!
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