मेरे गाँव की दो सड़के
कहने को तो दोनों हमारी
लेकिन एक कच्ची एक पक्की
पहले दोनों कच्ची थी
दुःख दर्द की साथी थी
एक के गड्ढो पर दूसरी भी रोती थी
दोनों अभागी सी जीती थी
कच्ची से हुआ ये व्यव्हार सौतेला
क्युकि पक्की से दौरा मंत्री का था निकला
एक दिन किसी को गाँव के याद आयी
उसने मंत्री से आने की गुहार लगायी
था उसने सोचा गाँव के हालत दिखा कर
उनको सवाल पूछेगा विकास के नाम पर
मंत्री के आने से पहले
चमचो ने सड़क बनवाई
पैसे लिए दोनों के लेकिन
किस्मत एक ही की चमकाई
कर दिया कुछ इंतज़ाम ऐसा
गाँव लगने लगा शहर जैसा
जिस रास्ते आया था
उसी रास्ते लौटा काफीला
मंत्री को भा गया विकास ऐसा
जिसने शिकायत की थी उसे फटकारा
बोले इस गाँव को मॉडल बनायेंगे
और इसी तरह देश को प्रगति की राह पर चलाएंगे
अब पक्की को हो गया
गुमान नए रूप पर अपने
किसी अमीर महिला के तरह
वो देती कच्ची को ताने
भाग कर्म के देनी लगी प्रवचन
तो कभी कच्ची के चरित्र पर लांछन
कच्ची से और ना सुना गया
उसने भी अपना आप खो दिया
इतना ना इतराओ पक्की से बोली
दुःख दर्द के साथी से ठीक नहीं ऐसी ठिठोली
ये जो रूप में निखार आया है
बस ऊपर से पावडर ही लगाया है
अंदर से तुम भी कमजोर मेरी जितनी
धो कर जायेगा तुम्हे बारिश का पहला पानी
फ़िर अपने रूप के साथ ना जी पायोगी
समझती हु तुम्हे फ़िर कभी ना हंस पाओगी