कैसे कह दू क्या है होता
कैसे लिख दू प्रेम कविता
माधुर्य का पर्याय तुम्ही हो
संध्या की हो अद्भुत बेला
कुमुदनी कुसुम कहू या
कह दू चन्द्रमा की शीतलता
नैनों में लिखी एक पहेली
भावनावो की हो रंगोली
अनंत की हो जैसे रौशनी
हो मेरे ह्रदय की सहेली
तू अलबेली जो सुनना चाहे
शब्द नहीं जो वो कह पाए
कैसे कह दू क्या है होता
कैसे लिख दू प्रेम कविता
About Me
- ओमी
- I write poems - I m going towards me, I write stories - किस्से ओमी भैय्या के, I write randomly - squander with me
Tuesday, April 27, 2010
Monday, April 05, 2010
रिश्ते
अनलिखे ख़त के है कभी कागज़ कोरे
कभी किताब में दबे से भूले ये बिसरे
रिश्ते आखिर है ये कैसे सिलसिले
हम न समझे फिर भी निभाते रहे
एक थी मंजिले और एक थे रस्ते
आज है वो हमसफ़र क्यों अनजाने
सांसो को भी छु लेने कि कभी नजदिकिया
और कभी नाम भी न ले पाने कि दुरिया
कभी सुरमई शाम की है ठंडी हवा
है कभी तपते सूरज की गर्मिया
रिश्ते आखिर है कैसी ऋतुये
बिना वक़्त के यह बदल जाये
आँचल के पीछे से है झाकते
छोटे होने की जिद में है लड़ते
कभी यु ही मुह फुलाये बैठे रहे
और कभी आके खुदसे गुदगुदाए
जिनके बिना कभी जीना था मुश्किल
कही दूर ही छुट जाये हो जाये ओझिल
रिश्ते आखिर है ये कैसे है बूँदें
बारिश हो फिर भी रह जाये सूखे
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