कोई यु ही सूरज डूबा रहा था
था कोई खोया किसी की बाहों में
कोई फिर से बचपन जी रहा था
था कोई किसी के इंतज़ार में
मैं भी वजह खोज रहा था
अपने वहा इस तरह होने की .......
कभी तोलते थे रेत मुठियों में
था लिखा नाम कभी रेत में
जो भी लिखा था कभी प्यार से
वो अब लहरों में कही बह गया
मैं वही रेत खोज रहा था
फेकी थी जो तुने मुझपे
कभी थे कहते सपने कल के
कभी थे बहाने देर से आने के
चुप कही बैठे रहते कभी तो
शोर कभी सुनते लहरों के
मैं वही अलफ़ाज़ सुन रहा था
जो कभी खामोश थे
अब कोई सूरज डूबा चूका था
कर रहा था कोई वादा मिलने का
मैं भी वजह खोज रहा था
अपने वहा से अब जाने की ....
1 comment:
Sahi hai ... main bhi wajah khoj raha hu, apne yaha is tarah hone ki :-)
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