About Me

I write poems - I m going towards me, I write stories - किस्से ओमी भैय्या के, I write randomly - squander with me

Wednesday, October 31, 2007

naqab

पहने रहा यह नकाब कुछ ऐसे
अब पास मेरे सिवा इसके कुछ नही
था शयद मेरा भी कोई निशान कही
मुझे अब अपनी ही शकल याद नही

नज़र जैसे सबकी मेरे नकाब पर है
अपने नाक़बो से उन्हें नफरत ऐसी है
किस कलाकार ने बनाया है इसे पूछते है
कहता ह ज़माने ने दिया है तो हस्ते है
जब आया था यहा तो मांस का टुकडा था
आज ज़माने ने इन्सान बना दिया है मुझे
सिखाई मुझे सब लोगो ने उनकी ही जुबान
आज कहते है मेरे अल्फास नए से क्यों है
साजिश है मेरे नकाब को छीनने की यह
उनके नकाब अब शिशो से साफ जो है

कहता है ज़माना एक बात बता दे
तू चीज़ क्या है हमे समझा दे
कहता था पहले तू क्यों हमसा नही है
बना इसके तरह तो अब यह वैसा नही है
अगर हर शकल यहा नकाबपोश है
तो मेरे नकाब से ही यह सवाल क्यों है

Sunday, October 21, 2007

duriya

मालुम न था यह बात इतनी बिगड़ जायेगी
दो पल कि यह दुरी इतनी बड़ी हो जायेगी

रोका नही था यह सोच कर
ख़ुद ही लौट आयोगे
मेरे नही तो कम से कम
अपने दिल की ही मान लोगे
मालुम न था दिल की बात बेअसर हो जायेगी
दो पल कि यह दुरी इतनी बड़ी हो जायेगी

हम जो देना चाहे आवाज़
तो तुम हो जाने कहा
परछाइंया भी न आए नज़र
अँधेरा यह छाया कैसा
मालुम न था प्यार कि रौशनी मद्धम हो जायेगी
दो पल कि यह दुरी इतनी बड़ी हो जायेगी

Saturday, October 20, 2007

sharabi

अगर शराब है खत्म तेरे मैखाने मे
तो नज़रे मिला के पानी ही देदे जाम मे
किसको चड़ता है नशा यहा पीने से
हमको तो नशा है तेरे इश्क मे जीने से

है बहूत बड़ा यह शहर
इसमे मैखाने और भी है
नए नही इस शहर मे जो
बाकियों से हम अनजाने है
बहाना है पीना जो आते है तेरे मैखाने मे
तरसे हुए है सुकून पाते है तेरे दीदार मे

जानते है तुझे हमसे कोई वास्ता नही
मैं तेरे लिए एक शराबी ही सही
खाली यह जाम हँसता है मुझपे
इसकी चुभती हसी को एक हद देदे
ज़िंदगी नही तो मौत का ही जाम दे
पानी भी नही तेरे पास तो साकी जहर देदे
बहूत है गलिया शहर मे लड़खडांने क लिए
आज लड़खडाने से पहले सम्हाल ले तेरे मैखाने मे