About Me

I write poems - I m going towards me, I write stories - किस्से ओमी भैय्या के, I write randomly - squander with me

Sunday, March 25, 2007

moksha

मैं ही ब्रम्हा विष्णु हू मैं हू शिवा
मेरे ही कंठो मे समाया हलाहल सारा

विस्मित करती सबको जो यह है धरा
गगन का बैठाया जाल उसपे सारा
ललचाने को तुझे मैं सितारे चमकता
चाँद और सूरज को देता मैं ही उजाला

रंग सरे मैंने रंगे फूलों को महकाया
वायु को बहने के लिए दिशा ज्ञान समझाया
नदियों को मोडा है ऐसे की जंगलो को सींचा
गहरी खाई ऊँचे पहाडो का मैं ही रचियिता

मनुष्य का मन है मेरा ही आविष्कार
मोहमाया मे देखता है तू सारा संसार
खोल नयन देख कौन खड़ा है उसके पार
तू है मेरा ही अंश मैं तेरा साकार

मैं ही ब्रम्हा विष्णु ह मैं ह शिवा
सारा जग मुझे है और मैं तुझमे समाया

1 comment:

main_sachchu_nadan said...

Wah bhai .. aapne to ekdam sahityik rachana kar dali ... badhiya hai!!!