काढिंनाइँ चाहे जितनी आए
राहे मुजको मिल न पाए
फिर भी मैं चलूँगा,एक कदम मैं और रखूँगा
पैरो मे जितने चाहे चुभे काटे
हाथ मे हो जितनी भी गरम सलाखे
मैं इनं पहाडो को काटुंगा
सागर मे भी पुल बाधुन्गा
आँसुओ को भी बहना होगा
खुनं बनके पसीना बहेगा
जो धड़कता है इस जिस्म मी
उसके लिए मैं चलूँगा, एक कदम मैं और रखूँगा
सोचता हू मैं जो रुक गया यहा
आगे न फिर बन पायेगा कोई रास्ता
जो आते है मेरे बाद वह जायेगे कहा
आखिर किसी को तो है यहा दफ़न होना
दफ़न होने के लिए मैं चलूँगा,एक कदम मैं और रखूँगा
माना आज मैं नाकामयाब हू
कल भी मेरा शायद न निशान होगा
जब कोई गुजरेगा इन रास्तों से
वही मेरा इनाम होगा
उस इनाम के लिए मैं चलूँगा,एक कदम मैं और रखूँगा
4 comments:
Wow guru man gaye tumhe .... tum to sabke guru nikale!!!Kudos for OP...the gr8 Foktai Poet!!Aaj se hum apne Foktai ke samrajya ka Rajkavi niyukt karte hai!!
dats very nice
i really dint kno yar ke u write so well!
well well ur frens call u as 'gifted'..
i wud say ..
'yes'
its very correct...
keep it upp...
naaz hai tumpe!
It is very santi poem but i thought the name is not correct it should be "Voice of Hope
It is very santi poem but i thought the name is not correct it should be "Voice of Hope
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