सिर्फ ऊँची दीवारों और
बंद दरवाजों से ही घर नहीं बनते,
आसरा देने वाले वो टूटे पाईप और
कचरे के ढेर भी किसी घर से कम नहीं होते |
छत और दीवारें नहीं होती,
दरवाजे खिड़कियाँ भी नहीं होती,
लेकिन बिखरे कचरे के बीच,
वो किसी घर से कम नहीं होते |
जो बूढों को ओढा दे कंबल फटे से,
कभी दे बच्चों को खिलौने बेकार से,
दुसरो के घरों से फेंकी चीज़ों से बने
वो किसी घर से कम नहीं होते |
कभी रुखा सुखा परोसे,
तो कभी खाली डिब्बों में बची मिठाई,
बिना रसोई के भी पेट भर दे,
बिना रसोई के भी पेट भर दे,
वो किसी घर से कम नहीं होते |
अनाथों को खेलने दे,
लावारिसों को सोने दे,
इतने विशाल हृदय वाले,
वो किसी घर से कम नहीं होते |
रिश्तों के पर्दे नहीं होते,
जरूरतों के बंधन नहीं होते,
पुश्तों के बटवारे नहीं होते,
वो किसी घर से कम नहीं होते |
वो किसी घर से कम नहीं होते |
2 comments:
Aapane apni jumle ka Baat bahut Achcha se taiyar Kiya Hai
Jai Guru jiju
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