मुझसे तेरा दूर होना
तेरी शरारत हैं
मुझसे बात ना करना
तेरी शरारत हैं
मुझे किसी मोड़ पे रोके करना
तेरी शरारत हैं
मैं जानता हूँ कि ये भुलावा हैं
मगर यूँ ही
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता हैं
ख्वाबों की तस्वीर
दिल से निकल कर
दीवारों पर लग भी सकती थी
ख्यालो का फलसफ़ा
ज़ेहन से निकल कर
ज़ुबा पे हों भी सकता था
मैं जानता हूँ कि ये हों न सका
मगर यूँ ही
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता हैं
शायद कोई खत हों कहीं
जो मुझ तक पहुंचा नहीं
या फिर कोई इशारों की बात
जिसको मैं समझा नहीं
शायद आज भी तुझे उम्मीदे हैं
कि मिल जाये हम फिर से कहीं
मैं जानता हूँ कि ऐसा कुछ भी नहीं
मगर यूँ ही
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता हैं
अब शिकवा नहीं शिकायत नहीं
किसी पुराने सवाल का जवाब भी नहीं
तेरी ख्वाहिशों से गुज़र कर
अब दिल को कोई गम भी नहीं
अंधेरो में सिमटी ये रात
इसको अब सवेरे का इंतेज़ार भी नहीं
मैं जानता हूँ कि अब तू गैर हैं
मगर यूँ ही
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता हैं
1 comment:
waah janaam .. gam-e-ishk kafi sanjidagi se bayaa kiya hai !!
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