मेरी कालजयी रचना हो तुम
एक अनसुलझा विचार हो तुम
कुछ लिख लेने की वजह हो तुम
होठो में छाई ख़ामोशी हो तुम
आँखों में तैरती ख्वाहिश हो तुम
कुछ पा लेने का हौसला हो तुम
कुछ खो देने का सुकुन हो तुम
जितना करीब आता हूँ
उतनी ही दुर हो तुम
जितना तुम्हे जानता हूँ
उतनी ही नयी सी हो तुम
कोई रिश्ता सा लगता है
फ़िर भी अंजान हो तुम
सोचता हूँ अक्सर यही कि
ज़िन्दगी ऐसी क्यों हो तुम?
5 comments:
wonderful!!
inspirations mostly aisi hi hoti hai maybe iss liye. beautifully penned :)
sarah
Bhai, kuch bhi kaho kamaal ho tum .. :-)
thanks Sweta Sarah and Sachin :)..what s coincidence all you guy's name starts with "S" :)
Good one... :)
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