About Me

I write poems - I m going towards me, I write stories - किस्से ओमी भैय्या के, I write randomly - squander with me

Monday, January 31, 2011

भीगी सी याद

आज सुबह घर के बाहर
कुछ ओस के बुँदे है
शायद रात में कोई
भीगी सी याद गुजरी होगी
दीवारों से सट कर
हथेलियों को जोड़ कर
इधर उधर पानी फेकती
भीगी सी याद गुजरी होगी

हम भी भीगा करते थे
कागज़ की नाव के साथ
छोटी छोटी लहरों के संग
सब दौड़ लगाये करते थे
रेशमी दुप्पटे के आड़ में कभी
कभी किसी के इंतज़ार में
मिटटी पर पैरो के निशान बनाते
पैदल चलते भीगा करते थे
उन्ही जाने अनजाने मोड़ो की
भीगी सी याद गुजरी होगी

गर्माहट है मुठ्ठियों की
हवा में थोड़ी ठंडक है
सच के सूखे मौसम में
गीली ये ओस की बुँदे है
किसी का तोहफा देने को
भीगी सी याद गुजरी होगी

Saturday, January 29, 2011

ख़ामोशी

खामोश है हवा
बंद खिडकियों के दरम्या
खामोश है दीवारे
उनमे टंगी तस्वीरो की तरह
अजीब सी ख़ामोशी
आजकल रहती है मेरे घर में
ख़ामोशी के शोर में
खुद से हो नहीं पाती बाते

इस कोने से
घर के उस कोने तक
जाने कितनी
मीलो की है दुरिया
जब गया था
पिछली बार मैं वहा
सुना था उस
कोने का भी फलसफा

अपनी शक्ल भी
आईने में अजनबी लगती है
अब जिंदगी भी
बिता हुआ कल लगती है
खोल लु दरवाज़ा
अब मेरी हिम्मत नहीं होती
अजीब सी ख़ामोशी
अब मेरे लबो से नहीं जाती


Wednesday, January 05, 2011

गुमनाम शाम

कभी किसी गुमनाम शाम की बाहों में
युहीं याद आ जाता है वो पुराना वादा
फ़िर बीते हुए लम्हों की तस्वीर लिए
वो ताकता रहता है खाली आसमा

आखों के रंग बदलती थी जो बाते
आज अपने साथ ले आती है बुँदे
युहीं पलकों में तैरती रहती है
अब उनको जमीन पे नहीं गिराता

किसी के आने की उम्मीद नहीं रखता
ना किसी इत्तेफाक पर यकीन करता
युहीं इस तरह वक़्त है बीत जाता
फ़िर भी वो उस जगह से नहीं उठता

Tuesday, January 04, 2011

कवि की व्यथा

एक मृगनयनी
कवि महाराज से बोली
ये आप क्या करते हो
इधर उधर की बाते कहते हो
कभी बाते गंभीर होती है
अक्सर बिना सर पैर की होती है
क्यों नहीं कुछ अच्छा लिखते
कुछ प्रेम व्रेम की बाते करते
जो कभी किया नहीं प्यार
तुमे लगे नहीं लिख पाओगे श्रृगांर
तो एक कम करो आसान
चलाओ कोई हास्य का बाण

कवि ने सोचा
लिखे कोई प्रेम कविता
करे युवती के रूप का बखान
फिर आया उसके दबंग भाइयो का ध्या
वैसे भी नारी वर्णन में कितने कवि बर्बाद हुए
परेशान थे अब कैसे अपनी नैया पार लगे

बालिके को इम्प्रेस करने कि जो थी ठानी
उन्होंने हास्य की पुरी हिस्ट्री छान मारी
किसी असहाय का मजाक उड़ाना
होगा हास्य निम्न कोटि का
लेकिन औकात भी कहा थी
कि लिखे कुछ उच्च कोटि का
राजनीति से प्रेरित व्यंग्य के दिन लद गए
क्युंकि आम लोग उनसे ज्यादा कमीने हो गये
आजकल हँसी के माने बदल गए
टीवी के कुछ शो हँसाने को रह गए

लिख दी बाते दो चार
कुछ आचार कुछ विचार
खुद समझ नहीं पाये क्या लिखा है
हास्य के नाम पर क्या गंध छोड़ा है
विनाशकाले विपरीत बुद्धि से बच गए
और सही समय पर अपने इरादों से हट गए

किसी को बताया नहीं
कि कभी कुछ ऐसा भी था लिखा
मृगनयनी से बोले
लिखेंगे आपके लिए ये वादा रहा