About Me

I write poems - I m going towards me, I write stories - किस्से ओमी भैय्या के, I write randomly - squander with me

Thursday, November 19, 2009

नया शहर

क्यों सुबह चलती नहीं कोई पुरवाई
क्यों सर्द होती नहीं यहाँ की शामे
क्यों कोई नहीं डरता तपती धुप से
क्यों कोई नहीं देखता रास्ता बारिश का
आये जो बिना बुलाये बौछारे
क्यों कोई यहाँ नहीं भीगता

क्यों बचपन यहाँ है इतना सोचता
क्यों कोई बच्चा पतंग नहीं लुटता
क्यों नहीं होती शादी गुडिया गुड्डो की
क्यों कोई रूठने के बाद खुद ही नहीं मानता
उम्र से जो सब लगते है सब छोटे यहाँ
क्यों बातो से वो बच्चा नहीं लगता

कोई नहीं जोड़ता पड्सियो से रिश्ता
कोई नहीं अब चीनी मागने आता
क्यों कोई नहीं है यहाँ दादी-दादा
क्यों हर दरवाजा बंद है रहता
इतनी भाषाए सबको आती है मगर
क्यों कोई बेवजह बाते नहीं करता

किनारा

कोई यु ही सूरज डूबा रहा था
था कोई खोया किसी की बाहों में
कोई फिर से बचपन जी रहा था
था कोई किसी के इंतज़ार में
मैं भी वजह खोज रहा था
अपने वहा इस तरह होने की .......

कभी तोलते थे रेत मुठियों में
था लिखा नाम कभी रेत में
जो भी लिखा था कभी प्यार से
वो अब लहरों में कही बह गया
मैं वही रेत खोज रहा था
फेकी थी जो तुने मुझपे

कभी थे कहते सपने कल के
कभी थे बहाने देर से आने के
चुप कही बैठे रहते कभी तो
शोर कभी सुनते लहरों के
मैं वही अलफ़ाज़ सुन रहा था
जो कभी खामोश थे

अब कोई सूरज डूबा चूका था
कर रहा था कोई वादा मिलने का
मैं भी वजह खोज रहा था
अपने वहा से अब जाने की ....

Saturday, November 14, 2009

एक सपना

पलकों की पीछे वाली गलियों मे
आँख मीचे एक सपना रहता है
बड़े बड़े सपनो के इस शहर मे
वो बच्चो सा सहमा रहता है


मेरे खोये बचपन की निशानी वो
मेरे वापस आने की राह तकता है
बंद कर घर के दरवाजो को
खिड़कियों से झाका करता है


झूटे मूटे वादों को सच्चा मान के
बाकी सपनो से लड़ा करता है
मेरे आने पे शिकायात करेगा
बाकी सपनो यह धमकी देता है


बचपन के साथियों को भूल गया हु
मेरे बड़े होने कि कीमत यही है
इसका भी पता किसी कागज़ मे लिख के
उस कागज़ का पता भूल गया हु

मेरे भी दिल कि किसी कोने मे
मुठी बंधे एक उम्मीद रहती है
हर बड़े सपने के पुरे होने के बाद
इसके पुरे होने कि दुआ मांगती है