क्यों सुबह चलती नहीं कोई पुरवाई
क्यों सर्द होती नहीं यहाँ की शामे
क्यों कोई नहीं डरता तपती धुप से
क्यों कोई नहीं देखता रास्ता बारिश का
आये जो बिना बुलाये बौछारे
क्यों कोई यहाँ नहीं भीगता
क्यों बचपन यहाँ है इतना सोचता
क्यों कोई बच्चा पतंग नहीं लुटता
क्यों नहीं होती शादी गुडिया गुड्डो की
क्यों कोई रूठने के बाद खुद ही नहीं मानता
उम्र से जो सब लगते है सब छोटे यहाँ
क्यों बातो से वो बच्चा नहीं लगता
कोई नहीं जोड़ता पड्सियो से रिश्ता
कोई नहीं अब चीनी मागने आता
क्यों कोई नहीं है यहाँ दादी-दादा
क्यों हर दरवाजा बंद है रहता
इतनी भाषाए सबको आती है मगर
क्यों कोई बेवजह बाते नहीं करता
About Me
- ओमी
- I write poems - I m going towards me, I write stories - किस्से ओमी भैय्या के, I write randomly - squander with me
Thursday, November 19, 2009
किनारा
कोई यु ही सूरज डूबा रहा था
था कोई खोया किसी की बाहों में
कोई फिर से बचपन जी रहा था
था कोई किसी के इंतज़ार में
मैं भी वजह खोज रहा था
अपने वहा इस तरह होने की .......
कभी तोलते थे रेत मुठियों में
था लिखा नाम कभी रेत में
जो भी लिखा था कभी प्यार से
वो अब लहरों में कही बह गया
मैं वही रेत खोज रहा था
फेकी थी जो तुने मुझपे
कभी थे कहते सपने कल के
कभी थे बहाने देर से आने के
चुप कही बैठे रहते कभी तो
शोर कभी सुनते लहरों के
मैं वही अलफ़ाज़ सुन रहा था
जो कभी खामोश थे
अब कोई सूरज डूबा चूका था
कर रहा था कोई वादा मिलने का
मैं भी वजह खोज रहा था
अपने वहा से अब जाने की ....
था कोई खोया किसी की बाहों में
कोई फिर से बचपन जी रहा था
था कोई किसी के इंतज़ार में
मैं भी वजह खोज रहा था
अपने वहा इस तरह होने की .......
कभी तोलते थे रेत मुठियों में
था लिखा नाम कभी रेत में
जो भी लिखा था कभी प्यार से
वो अब लहरों में कही बह गया
मैं वही रेत खोज रहा था
फेकी थी जो तुने मुझपे
कभी थे कहते सपने कल के
कभी थे बहाने देर से आने के
चुप कही बैठे रहते कभी तो
शोर कभी सुनते लहरों के
मैं वही अलफ़ाज़ सुन रहा था
जो कभी खामोश थे
अब कोई सूरज डूबा चूका था
कर रहा था कोई वादा मिलने का
मैं भी वजह खोज रहा था
अपने वहा से अब जाने की ....
Saturday, November 14, 2009
एक सपना
पलकों की पीछे वाली गलियों मे
आँख मीचे एक सपना रहता है
बड़े बड़े सपनो के इस शहर मे
वो बच्चो सा सहमा रहता है
मेरे खोये बचपन की निशानी वो
मेरे वापस आने की राह तकता है
बंद कर घर के दरवाजो को
खिड़कियों से झाका करता है
झूटे मूटे वादों को सच्चा मान के
बाकी सपनो से लड़ा करता है
मेरे आने पे शिकायात करेगा
बाकी सपनो यह धमकी देता है
आँख मीचे एक सपना रहता है
बड़े बड़े सपनो के इस शहर मे
वो बच्चो सा सहमा रहता है
मेरे खोये बचपन की निशानी वो
मेरे वापस आने की राह तकता है
बंद कर घर के दरवाजो को
खिड़कियों से झाका करता है
झूटे मूटे वादों को सच्चा मान के
बाकी सपनो से लड़ा करता है
मेरे आने पे शिकायात करेगा
बाकी सपनो यह धमकी देता है
बचपन के साथियों को भूल गया हु
मेरे बड़े होने कि कीमत यही है
इसका भी पता किसी कागज़ मे लिख के
उस कागज़ का पता भूल गया हु
मेरे भी दिल कि किसी कोने मे
मुठी बंधे एक उम्मीद रहती है
हर बड़े सपने के पुरे होने के बाद
इसके पुरे होने कि दुआ मांगती है
Subscribe to:
Posts (Atom)