देखो यह रणभूमि है
हर यहा मृत्यु शैया
जीत रात भर का आशीर्वाद है
सुबह लाती ललकार शत्रु की
साँझ सूचना घायलों की
मरने वालो कि पहचान कहा है
साबुत मिले वह शव कहा है
यहा लहू कि कहा कमी है
देखो यह रणभूमि है
गर्जन करते आगे बड़ते है
अपनी वीरता का दंभ भरते है
देखे महावीर जो कल लड़ते थे
आज खुले नयनो से सोये है
महत्वाकांक्षा के बलि हुए वह
बचे हुए फिर भी चलते है
जितने की ही सबको पड़ी है
देखो यह रणभूमि है
कुछ के पास अनुभव बहुत है
कुछ सीधे आँगन से आए है
मानव के सारे समंध भूल के
अपनी आंखों मे लहू लाये है
टपके पसीना शरीर से बाद मे
पहले इनका लहू बहता है
तलवार यहा अब किसकी सुखी है
देखो यह रणभूमि है
1 comment:
Wah bhai .. kavitao pe kavitaye likhe ja rahe ho..gud one!!!
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