मैं ही ब्रम्हा विष्णु हू मैं हू शिवा
मेरे ही कंठो मे समाया हलाहल सारा
विस्मित करती सबको जो यह है धरा
गगन का बैठाया जाल उसपे सारा
ललचाने को तुझे मैं सितारे चमकता
चाँद और सूरज को देता मैं ही उजाला
रंग सरे मैंने रंगे फूलों को महकाया
वायु को बहने के लिए दिशा ज्ञान समझाया
नदियों को मोडा है ऐसे की जंगलो को सींचा
गहरी खाई ऊँचे पहाडो का मैं ही रचियिता
मनुष्य का मन है मेरा ही आविष्कार
मोहमाया मे देखता है तू सारा संसार
खोल नयन देख कौन खड़ा है उसके पार
तू है मेरा ही अंश मैं तेरा साकार
मैं ही ब्रम्हा विष्णु ह मैं ह शिवा
सारा जग मुझे है और मैं तुझमे समाया
मेरे ही कंठो मे समाया हलाहल सारा
विस्मित करती सबको जो यह है धरा
गगन का बैठाया जाल उसपे सारा
ललचाने को तुझे मैं सितारे चमकता
चाँद और सूरज को देता मैं ही उजाला
रंग सरे मैंने रंगे फूलों को महकाया
वायु को बहने के लिए दिशा ज्ञान समझाया
नदियों को मोडा है ऐसे की जंगलो को सींचा
गहरी खाई ऊँचे पहाडो का मैं ही रचियिता
मनुष्य का मन है मेरा ही आविष्कार
मोहमाया मे देखता है तू सारा संसार
खोल नयन देख कौन खड़ा है उसके पार
तू है मेरा ही अंश मैं तेरा साकार
मैं ही ब्रम्हा विष्णु ह मैं ह शिवा
सारा जग मुझे है और मैं तुझमे समाया